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R. Srinivasan (1859–1945), also known as Rettamalai was an activist, politician and writer ,was born in Tamilnadu, India
R. Srinivasan (1859–1945), also known as Rettamalai was an activist, politician and writer ,was born in Tamilnadu, India
Our Indian Music Stories and Anecdotes
The history of Indian music is brimming with stories and
anecdotes. Why, the very origin of music and other fine arts is in itself a
story. The creator, Brahma, made this universe. He created a variety of
wonderfully beautiful and enchanting things. He created the majestic mountain
ranges, the thundering water-falls and the giant forest trees, as also the
nimble deer, the colourful peacocks and the exquisite flowers. He filled his
creation with beauty, charm and splendour. But he was sad. His consort Saraswati
asked him the reason for his sadness. भारतीय
संगीत का इतिहास कहानियों और घटनाओं सेभरा है। संगीत एवं अन्य ललित कलाओं का
आरंभ स्वयं अपने आप में एक कहानी है। रचयिता ब्रह्मा ने इस ब्रह्मांड को बनाया
उन्होंने भिन्न भिन्न प्रकार की अद्भुत सुंदर और मोहक वस्तुओं की रचना की।
उन्होंने शानदार पर्वत मालाएं गरजते हुए झरने और विशाल आकार वाले वनवृक्ष
बनाए और साथ ही चुस्त हिरण, रंग-बिरंगे मोर, और बढ़िया फूलों की भी रचना की। उन्होंने
सृष्टि को सौंदर्य, आकर्षण और वैभव से भर दिया। परंतु वे उदास थे उनकी पत्नी सरस्वती ने
उनसे उनकी उदासी का कारण पूछा।
Brahma said, “It is true I have created all this wonder and
charm and showered beauty everywhere. But what is the use? My children, the
human souls, simply pass them by; they do not seem to be sensitive to the
beauty around. It seems to have been wasted on them, this creation sees to be
purposeless.” ब्रह्मा ने कहा यह
सच है कि मैंने इन सब अद्भुत वस्तुओं और आकर्षण की रचना की है और हर स्थान पर
सौंदर्य बिखेरा है परंतु इसका क्या लाभ है? मेरे बच्चे मानव आत्माएं सरलता से इन की अनदेखी कर देते हैं। वे अपने चारों ओर के सौंदर्य के प्रति संवेदनशील प्रतीत नहीं होते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि यह सब उनके लिए व्यर्थ है, यह रचना निरर्थक लगती है।
Saraswati understood his feelings and told him, “Well, let
me do my share in the great work. You have created all this beauty and
splendour; I shall create in our children the power to respond, to appreciate
and be uplifted by them. I shall give them music and other arts which will draw
out form deep within them the capacity to respond to the majestic splendour and
exquisite charm and wondrous beauty of all creations.”
सरस्वती उनकी भावनाओं को समझ गई और उनसे कहा अच्छा
इस महान कार्य में मुझे अपना हाथ बंटाने दो। आपने इन सब
सौंदर्य और वैभव की रचना की है। मैं हमारे बच्चों में प्रतिक्रिया करने की, प्रशंसा करने की और
इसके द्वारा उन्हें ऊंचा उठाने की शक्ति की रचना करूंगी। मैं उन्हें संगीत और अन्य
ललित कलाएं प्रदान करूंगी जो उनके अंदर उस क्षमता को उभारेगी जिससे वे सब रचनाओं के भव्य, वैभव और आकर्षक तथा अद्भुत सौंदर्य के प्रति
सक्रिय हो सके।
The great muse then gave us music and the other fine arts,
in the hope that through them man would understand something of the Divine in
his manifestation. A strange story? Yes, but it has a great moral. ज्ञान की देवी ने
फिर हमें संगीत और अन्य ललित कलाएं प्रदान की इस आशा से कि इसके द्वारा मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति में अलौकिक अंश को समझेगा एक
विचित्र कहानी है? हां परंतु यह एक महान नीति वचन भी है।
One of the basic truths on which all Indian art is developed
is that true art is never made to order; it comes as a result of an
irresistible inner urge. We hear a song of Thyagaraja and are enthralled, we
see a majestic temple tower and gaze on it with wonder; we see some of our
ancient sculptures and feel thrilled. Why? Behind all such works of art is a
great spiritual urge. The artists who gave them to us poured their devotion
into the shape of such exquisite works of art; it was an act of self effacing
dedication. ‘एक मौलिक सत्य जिस
पर भारतीय कला का विकास हुआ है,यह है की
सच्ची कला आदेश देने पर कभी नहीं बनाई जाती यह एक अथक भीतरी प्रेरणा के फलस्वरूप आती है। हम
त्याग राज का एक गीत सुनते हैं और मंत्रमुग्ध हो जाते हैं, हम एक मंदिर के वैभवशाली बुर्ज को देखते हैं और आश्चर्यचकित
होकर एकटक निहारते रहते हैं, हम अपनी कुछ प्राचीन मूर्तियों को देखते
हैं और रोमांचित होते हैं क्यों? इन सब कलाकृतियों के पीछे एक महान आध्यात्मिक
प्रेरणा होती है। जिन कलाकारों ने हमें यह दिया, उन्होंने अपनी निष्ठा को ऐसी उत्तम
कलाकृतियों के रूप में उड़ेल दिया था यह एक स्वयं को मिटाने वाला आत्मसमर्पण का
कार्य था।
A story is told of Tansen, the great bard of Akbar’s court,
which illustrates this point vividly. Tansen was a great musician and Akbar was
very fond of his music. One day when Tansen was in particularly good form,
Akbar went into ecstasy and asked him, “What is the secret of this sweet
concord of notes which takes me out of this world and transports me to Divine
regions? I have not heard anyone else who can thus cast a spell of magic and
make a slave of our hearts. You are really wonderful, Tansen. अकबर केदरबार के महान संगीतकार कवि तानसेन के बारे में एक कहानी बताई जाती है जो इस बात की स्पष्ट
रूप से व्याख्या करती है। तानसेन एक महान संगीतकार था और अकबर उसके संगीत का बहुत
शौकीन था। एक दिन जब तानसेन विशेष रूप से अच्छे कला रूप में था, अकबर आनंद विभोर हो
गया और उसने पूछा इस मधुर संगीत स्वर का क्या भेद है जो मुझे इस संसार में से बाहर
देवी प्रदेश में ले जाती है? मैंने किसी और को नहीं सुना जो इस प्रकार का जादू का
असर डाल सके और हमारे हृदय को अपना दास बना सके। तानसेन तुम वास्तव में अद्भुत हो।
The great bard replied, “Sir, I am only a humble pupil of my
master, Swami Hari Das; I have not mastered even a fraction of the master’s
technique, grace and charm. What am I beside him whose music is a rhythmic flow
of Divine harmony, beauty and charm in sound?” महान संगीतकार ने उत्तर दिया। महाराज मैं अपने गुरु स्वामी हरिदास का केवल
एक तुच्छ शिष्य हूं। मैं अपने गुरु के कौशल शोभा और जादू के अंश मात्र में भी दक्ष
नहीं हुआ। उनके सामने मैं क्या हूं जिनका संगीत देवी सुर
सौंदर्य और जादू की एक ताल बद्ध धारा है?
“What! The emperor cried, “Is there one who can sing better
than you? Is your master such a great expert?”
“I am but a pigmy by my master’s side,” said Tansen. Akbar was
greatly intrigued; he wanted to hear Hari Das, emperor though he was, he could
not get Hari to his court. So he and Tansen went to the Himalayas where in his
ashrama dwelt the Swami. क्या! सम्राट चिल्लाया क्या कोई ऐसा है जो तुमसे अच्छा गा सकता है? क्या
तुम्हारे गुरु कितने महान विशेषज्ञ हैं? अपने गुरु के सामने तो मैं केवल एक बोने
के समान हूं तानसेन ने कहा। अकबर बहुत उत्सुक हो उठा वह हरिदास को सुनना चाहता था
परंतु यद्यपि वह सम्राट था वह हरिदास को अपने दरबार में नहीं बुला सकता था इसलिए वह
और तानसेन हिमालय पर गए जहां स्वामी जी आश्रम में रहते थे।
Tansen had already warned Akbar that the Swami would sing
only if he wanted to.Several days they stayed at the ashrama; but the Swami did
not sing. Then, on day Tansen sang on of the songs taught by the Swami and
deliberately introduced a false note. It had almost an electric effect on the
saint; his aesthetic nature received a rude shock. He turned to Tansen and
rebuked him, saying, “What has happened to you, Tansen, that you, a pupil of
mine, should commit such a gross blunder?” तानसेन
ने पहले ही अकबर को सावधान कर दिया था कि स्वामी जी केवल तभी गाएंगे जब उनकी इच्छा
होगी वह कई दिन आश्रम में रहे परंतु स्वामी ने नहीं गाया। फिर एक दिन तानसेन ने
स्वामी जी द्वारा सिखाए गए गीतों में से एक गीत गाया और जानबूझकर एक स्वर गलत गादिया। इसका संत पर बिजली का सा प्रभाव हुआ उनकी
सौंदर्य आत्मक प्रवृत्ति को आघात लगा। वे तानसेन की ओर मुड़े और उसे डांटते हुए
कहा तानसेन तुम्हें हो क्या गया है? तुम मेरे शिष्य होकर भी इतनी बड़ी गलती कैसे
कर सकते हो?
He then started singing the piece correctly; the mood came
upon him and enveloped him and he forgot himself in the music, which filled the
earth and heaven. Akbar and Tansen forgot themselves in the sheer melody and
charm of the music.
फिर
उन्होंने उस गीत को ठीक ढंग से गाना शुरू कर दिया उन पर मस्ती छा गई और वह उस
संगीत में जो पृथ्वी और आकाश को भर रहा था स्वयं को भूल गए। उनके संगीत की लय और
जादू में अकबर और तानसेन भी अपने आप को भूल गए।
It was a unique experience. When the music stopped, Akbar
turned to Tansen and said, “You say you learnt music form this saint and yet
you seem to have missed the living charm of it all. Yours seems to be but chaff
beside this soul-stirring music.”
यह
एक अनुपम अनुभव था जब संगीत रुका अकबर ने तानसेन की ओर मुड़कर कहा तुम कहते हो कि
तुमने इस संत से संगीत सीखा और फिर भी ऐसा प्रतीत होता है तुमने सजीव जादू नहीं
सीखा। आत्मा को निचोड़ने वाले इस संगीत के
सामने तुम्हारा संगीत केवल भूसा लगता है।
“It is true, Sir,” said Tansen. “It is true that my music is
wooden and lifeless by the side of the living harmony and melody of the master.
But then there is this difference – I sing to the emperor’s bidding, but my
master sings to no man’s bidding but only when the prompting comes from this
innermost self. That makes all the difference.”
महाराज यह सत्य है तानसेन ने कहा “गुरु के सजीव संगीत और आकर्षण के सामने मेरा संगीत निर्जीव है। परंतु फिर भी यह
अंतर है मैं एक सम्राट के आदेश पर गाता हूं किंतु मेरे गुरु किसी मनुष्य के आदेश
पर नहीं गाते। वे तभी गाते हैं जब उनकी अंतरात्मा से उन्हें प्रेरणा मिलती है।“
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