THE JUDGEMENT- SEAT OF VIKRAMADITYA
We
are all familiar with the name of Vikramaditya. His reign has been a landmark
in the history of our country. The ‘Vikram Samvat’ owes its origin to him.
Although his name is so famous, it is strange that we hardly know anything
definite about his life. There is one thing certain about him, however, he
loved justice and learning. He gave perfect justice to his people and gathered
learned men about him in his court. It is said that he was the greatest judge
in history.
हम सब विक्रमादित्य के नाम से परिचित हैं।हमारे देश के इतिहास में उनके शासन का महत्वपूर्ण
स्थान रहा है। विक्रम संवत का आरंभ उनकी ही देन है। यद्यपि उनका नाम इतना प्रसिद्ध
है फिर भी हम उनके विषय में स्पष्ट रूप से शायद ही कम जानते हैं यह बड़ी विचित्र बात है। फिर भी उनके
विषय में यह निश्चित है की वह न्याय और विद्या से प्रेम करते
थे। उन्होंने अपनी प्रजा को पूर्ण न्याय दिया। और अपने दरबार में विद्वानों को
एकत्र किया। यह कहा जाता है कि वे इतिहास के महानतम न्यायाधीश थे।
Vikramaditya
was never deceived. Nor did he ever punish the wrong man. The guilty trembled
when they came before him for they knew that his eyes would look straight into
their guilt. And those who came to him with difficult problems were always
satisfied by the way he solved them. And so, in India after him whenever any
judge pronounced his judgement whit great skill, it was said of him, “Ah! He
must have sat on the judgment – seat of Vikramaditya.
विक्रमादित्य को कभी धोखा नहीं दिया जा
सका। उन्होंने कभी भी किसी निर्दोष व्यक्ति को दंड नहीं दिया। अपराधी काँपते थे जब वे उनके सामने आते थे क्योंकि वे जानते थे
कि उनकी आंखें उनके अपराध को स्पष्ट रूप से देख लेंगी। और जो व्यक्ति उनके सामने कठिन समस्याओं को
लेकर आते थे वह उनकी समस्याओं को हल करने के तरीके से सदैव संतुष्ट हो जाते थे। इसलिए
भारत में के बाद जब किसी न्यायाधीश ने बुद्धिमानी से न्याय किया है तो उसके विषय
में यही कहा गया कि वह अवश्य ही विक्रमादित्य के न्याय सिंहासन पर बैठा होगा।
Has
any one ever seen the judgement – seat of Vikramaditya? Perhaps not; because
the seat does not exist any more. I am going to tell you how it disappeared.
क्या कभी किसी ने विक्रमादित्य का न्याय
सिंहासन देखा है? शायद नहीं क्योंकि वह न्याय सिहासन अब कहीं नहीं है। मैं तुम्हें
यह बात बताने जा रहा हूं कि वह किस प्रकार अदृश्य हो गया।
After
the death of Vikramaditya, the people of Ujjain, in due course of time, forget
him. His palace and his fortress were ruined. The heaped up ruins, having been
covered with grass, dust and trees, were turned into a pasture for feeding the
cattle. The village – people used to send their cows out to these pastures to
graze. Early in the morning the cattle would go in the care of shepherd-boys
and would not return till late in the evening. When it was time to return, a
shepherd-boy would call out from the edge of the pasture and all the cattle
along with their cow herds would gather round him and together they would turn
homewards.
विक्रमादित्य की मृत्यु के पश्चात्
कालांतर में उज्जैन के लोग उन्हें भूल गए। उसके महल और किले नष्ट हो गए। धूल घाट और वृक्षों से ढक
जाने पर खंडहरों के ढेर पशुओं के चरने के लिए चरागाह बन गए। ग्रामीण अपनी गायों को
चराने के लिए इन चराह गांहों में भेज देते थे। प्रातः काल पशु चरवाहे बच्चों
की देख रेख में जाया करते थे। और शाम को देर से वापस लौट आते थे। जब उनके वापस आने
का समय होता था तो एक चरवाहा बच्चा चरागाह के एक कोने से आवाज देता था और सभी पशु
अपने चरवाहों के साथ एकत्रित हो जाते थे और वह सब एक साथ अपने घरों को चल देते थे।
Such
was the life of the shepherd – boys in the village about Ujjain. There were
many of them ad in the long days on the pastures, they had plenty of time for
fun. One day they found a playground. And, how delightful it was! The ground
under the trees was rough and uneven. Here and there, the ends of a great stone
peeped out, and in the middle, there was green mound, which looked very much
like a judge’s seat.
उज्जैन के आसपासके गांव के चरवाहे बच्चों
का जीवन इसी प्रकार था। वे बड़ी संख्या में थे और चरागाहों के लंबे दिनों में आनंद के लिए उनके पास पर्याप्त समय था। एक दिन उन्हें
खेलने का एक मैदान मिला और वह कितना सुहावना था! वृक्षों के नीचे की भूमि भद्दी और
ऊंची नीचे थी। जहां-तहां बड़े पत्थरों की नोंक निकली हुई दृष्टिगोचर होती थी और
मध्य में एक हरा टीला था जो एक न्यायाधीश के बैठने के स्थान की तरह प्रतीत होता
था।
At
last one of the boys thought so and seated himself on it. “I say, boys,” he
cried, “I’ll be the judge and you can bring all your cases before me, and we
will have trails.” Then he straightened his face and became very grave to act
the part of judge
अंत मे बच्चों में से एक ने ऐसा ही सोचा और वह उस पर जा
बैठा। उसने चिल्लाकर कहा मैं कहता हूं बच्चों मैं न्यायाधीश बनूंगा और तुम अपने सब
विवाद मेरे समझ ला सकते होऔर हम उनको सुनेंगेतब उसने अपना चेहरा गंभीर बनाया और
न्यायाधीश का पाठ करने के लिए अति गंभीर हो गया।
Other
saw the fun at once and whispering among themselves, quickly picked up some
quarrel and appeared before him. Each group stated their case, one saying that
a certain field was theirs, another saying that it was not and so on. They all
wanted him to settle the disputeदूसरे बच्चों ने इस मजाक को तुरंत ही समझ लिया और आपस में कानाफूसी
करते हुए झगड़ा किया और उसके सामने आ गए। प्रत्येक समूह ने अपना पक्ष प्रस्तुत
किया एक ने कहा की अमुक खेत उसका है दूसरे ने कहा कि उसका नहीं है और इसी प्रकार
मामला चलता रहा। वे सब उस विवाद का निपटारा करना चाहते थे।
But
now, all of a sudden, a strange thing made itself felt. The boy who appeared so
common before he sat down on the mound, looked so different now. He had become
grave and serious and his tone and manner were so strange and impressive that
the rest of the boys were a little frightened. Still they thought it was fun,
and once again they put up a fresh case before him and once more he gave his
judgment. And this went on for hours and hours together, he sitting on the
judge’s seat, listening to complaints and pronouncing sentences with the same
gravity till it was time to return. And then he jumped down from his place and
was just like any other cowherd.
किंतु अब अचानक एक विचित्र घटना स्पष्ट
रूप से दिखाई पड़ने लगी। हथेली पर बैठने से पहले जो लड़का साधारण सा बच्चा प्रतीत
होता था अब बहुत परिवर्तित दिखाई देने लगा। वह गंभीर हो गया था और उसका व्यवहार
इतना विचित्र और प्रभावशाली था कि शेष बच्चे कुछ भयभीत हो गए। फिर भी उन्होंने
सोचा कि यह खेल ही तो है और एक बार पुनः उन्होंने उसके सामने एक नया विवाद
प्रस्तुत किया और एक बार पुनः उसने अपना फैसला सुनाया। और इस प्रकार घंटों तक यही
क्रम चलता रहा वह न्यायाधीश के स्थान पर बैठकर उनकी शिकायतों को सुनकर उसी गंभीरता
से अपना फैसला उस समय तक सुनाता रहा जब तक उनके लौटने का समय ना हो गया। और तब वह अपने
स्थान से कूदा और अन्य बच्चों की तरह ही साधारण बच्चा बन गया।
From
then onwards, so famous did this cowherd become that all the complicated
disputes were put before him. And always the same thing happened. The spirit of
knowledge and justice would come to him and he would show them the truth. But
when he came down from his seat, he would be no different form the other boys.
इस घटना के पश्चात इतना प्रसिद्ध हो गया कि सभी जटिल विवाद उसके
समक्ष रखे जाने लगे। और सदैव वही बात होती थी। ज्ञान और न्याय की आत्मा उसमें आ
जाती थी और वह लोगों को सत्य के दर्शन करा देता था। किंतु जब वह अपने बैठने के स्थान से नीचे आ जाता
था तो वह अन्य लड़कों की तरह ही दिखाई देता था।
Gradually,
this news spread through the countryside. Grown-up men and women from all the
villages would bring their disputes in the court of the cowherd boy and always
they received a judgement that both sides understood and so went away
satisfied.
धीरे-धीरे यह समाचार आस-पास के गांव में
फैल गया। समस्त गांव के बड़ी आयु के पुरुष और स्त्रियां चरवाहे लड़के के दरबार में
अपनी विवादों को लाते थे। वह सदैव ही उन्हें ऐसा
निर्णय देता था जिससे दोनों पक्ष समझते थे अतः वे संतुष्ट होकर चले जाते थे।
Now
the king, who lived far away from Ujjain, heard this story, “Well” he said,
“that boy must have definitely sat on the judgment-seat of Vikramaditya.” The
king’s guess was correct, as the ruins about the meadows were once Vikramaditya
place. “If just sitting on the mound brings wisdom and justice to the
shepherd-boy,” he thought, “ let us dig deep and find the judgment-seat. I,
too, shall sit on it and hear all the cases. Then the spirit of Vikramaditya
will descend upon me as well and I shall always be j just king.”
So,
with spades and shovels, the grassy knoll where the boys played was overturned.
The boy who had been the self-made judge was sorrowful; he felt that something
very dear to him was being taken away.
अब राजा ने जो उज्जैन से काफी दूर रहता था। यह कहानी सुनी। उसने कहा
निश्चय ही वह लड़का विक्रमादित्य के न्याय सिंहासन पर बैठा होगा। राजा का अनुमान
ठीक था क्योंकि चरागाह का निकटवर्ती खंढर कभी विक्रमादित्य का महल था। उसने विचार किया
यदि टीले पर बैठने मात्र से ही चरवाहे लड़के को बुद्धिमानी और न्याय की प्राप्ति
हो जाती है तो हमें उसे गहरा खुदवाना चाहिए और न्याय सिंहासन का पता लगाना चाहिए
मैं भी उस न्याय सिंहासन पर बैठगा और सभी वादों को सुनूंगा। तब विक्रमादित्य की
आत्मा मेरे शरीर में आ जाएगी और मैं सदैव एक न्याय प्रिय राजा कहलाऊगा।
So,
with spades and shovels, the grassy knoll where the boys played was overturned.
The boy who had been the self-made judge was sorrowful; he felt that something
very dear to him was being taken away.
इसलिए फावड़ा और कुदाल ओं से घाट का टीला
जहां पर वे लड़के खेला करते थे खुद आ गया वह लड़का दुखी था जो स्वयं ही न्यायाधीश
बन गया था।उसने अनुभव किया कि उसकी कोई प्रिय वस्तु उससे छीनी जा रही है।
At
last the labourers came on something. They uncovered it and found a slab of
black marble, supported on the hands and wings of twenty five stone-angle.
Surely it was judgement-seat of Vikramaditya.
With
great rejoicing, it was brought to the city and placed in the hall of justice.
The king ordered his people to observe three day’s prayer fasting and announced
that on the fourth day he would ascend the throne publicly.
अंत में मजदूरों को कोई वस्तु मिली।
उन्होंने उस मिट्टी से मिट्टी हटाई और उन्हें 25 देव दूतों के हाथों और पंखों पर
सधी हुई काले रंग की एक पटिया मिली निश्चय ही यह विक्रमादित्य का न्याय सिंहासन था
अत्यंत प्रसन्नता के साथ इसे नगर लाया गया और न्यायालय के विशाल कमरे में रख दिया
गया राजा ने अपनी प्रजा को आज्ञा दी कि वह 3 दिनों तक ईश्वर की प्रार्थना करें और उपवास
रखें। और यह घोषणा की के चौथे दिन जनता के सामने
वह सिंहासन पर बैठेगा।
At
last the great morning came and crowds assembled to see the king take his seat.
Walking through the long hall, came the judges and priests of the kingdom,
followed the king , then as they reached
the seat of judgment, they parted into two rows, the king walked up in the
middle, bowed his head in reverence and went straight to marble slab.
अंत में प्रातः काल का वास्तु समय आया और
राजा को सिंहासन पर बैठता हुआ देखने के लिए लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई। लंबे हाल से चलकर राज्य के न्यायाधीश और पुजारी आए उनके पीछे
पीछे राजा था। तब जैसे ही वे न्याय सिंहासन के निकट आए वह 2 भागों में बट गए राजा उनके बीच में होकर आदर पूर्वक
अपना सिर झुकाए सीधे संगमरमर की पटिया की ओर बढ़ा।
When
the king was about to sit on the throne, one of the angles began to speak,
“Stop”, it said, “Do you think that you are worthy to sit on the judgement-seat
of Vikramaditya? Have you never desired to rule over kingdoms that were not
your own?” For a while the kin could not think of an answer. He knew his life
as unjust. After a long silence, he spoke “No”, he said, “I am not worthy”. “Go
then and fast and pray for three days.” Said the angle, “so that you may purify
yourself and be worthy to sit on the throne.” With these words it spread its
wings and flew away.
जब राजा उस सिंहासन पर बैठने ही वाला था
देवदूतों में से एक ने कहना आरंभ किया रुक जाओ! उसने कहा
क्या तुम समझते हो कि तुम विक्रमादित्य के न्यास सिंहासन पर बैठने के योग्य हो?
क्या तुमने कभी उन राज्यों पर राज करने की इच्छा नहीं कि जो तुम्हारे नहीं थे? कुछ
देर तक राजा को कोई उत्तर नहीं सूझा। वह जानता था कि उसका जीवन न्याय पूर्ण नहीं
है। लंबी चुप्पी के बाद वह बोला मैं योग्य नहीं हूं। देवदूत ने कहा तब जाओ और 3
दिन तक उपवास और प्रार्थना करो ताकि तुम अपने आप को शुद्ध कर सको और इस सिंहासन पर
बैठने के योग हो सके। इतना कहकर उसने पंख फैलाया और उड़ गया।
The
king prepared himself – with prayer and with fasting to come again and sit on
the judgment-seat of Vikramaditya. But this time again the same thing happened.
Another stone-angle asked him if he had never desire to possess the riches of
others. The king admitted that he had done so and, therefore, he was not worthy
to sit on the judgment-seat.
विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने के लिए
एक बार पुनः राजा ने ईश्वर की प्रार्थना की और उपवास करके स्वयं को तैयार किया।
किंतु इस बार भी वही घटना पुनः घटी। पत्थर के दूसरे देव दूतों ने उससे पूछा कि
क्या उसने कभी दूसरे के धन को लेने की इच्छा नहीं की। राजा ने स्वीकार किया कि
उसने ऐसा किया है अतः वह न्याय सिंहासनपर बैठने का अधिकारी नहीं है।
In
this way, whenever the king tried to occupy the throne, he was questioned by
and angle and he had to withdraw. This went on last angel was left supporting
the marble-slab. The king went near the throne with great confidence, for he
felt sure of being allowed to take his place that day.
इस प्रकार जब कभी भी राजा ने उस सिंहासन
पर बैठने का प्रयत्न किया एक देवदूत ने उस से प्रश्न किया और उसे वापस लौटना पड़ा।
यह कर्म उस समय तक चलता रहा जब तक उस संगमरमर की पटिया को साधने वाला केवल एक ही देवदूत दूर रह गया। राजा सिंहासन के पास बहुत विश्वास
के साथ गया क्योंकि उसे विश्वास था कि उसे उस दिन सिंहासन पर बैठने दिया जाएगा।
But as he came near the seat, the last angle
spoke, “Are you, then, perfectly pure in heart, O king? Is your heart as pure
as that of little child? If so, you are indeed worthy to site on his seat.”
“No”
said the king very slowly, “No, I am not worthy.” And at these words the angel
flew up into the sky, bearing the slab upon his head This was how the
judgment-seat of Vikramaditya disappeared from the earth forever.
किंतु जैसे ही वह सिंहासन के निकट आया अंतिम देवदूत ने कहा
हे राजा! क्या तुम अब पूर्ण रूप से ह्रदय से शुद्ध हो क्या तुम्हारा ह्रदय एक छोटे
बच्चे के समान पवित्र है? यदि ऐसा है तो तुम वास्तव में इस सीट पर बैठने के योग्य हो। राजा ने बहुत धीरे धीरे से कहा नहीं मैं योग्य नहीं हूं। और इन शब्दों को सुनकर अंतिम देवदूत
पटिया को अपने सिर पर रखकर आकाश में उड़ गया। इस प्रकार विक्रमादित्य का न्याय
सिंहासन सदैव के लिए पृथ्वी से गायब हो गया।
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