The story was narrated to Ganesh by a young man, Mahendra by
name. He was a junior supervisor in a
firm which offered on hire supervisors at various types of construction sites:
factories, bridges, dams, and so on.
Mahendra's job was to keep an eye on the activities at the work
site. He had to keep moving from place
to place every now and then as ordered by his head office: a coal mining area
to a railway bridge construction site, from there after a few months to a
chemical plant which was coming up somewhere.
कहानी गणेश को महेंद्र नाम के एक नवयुवक के
द्वारा बताई गई थी। वह एक व्यापारिक कंपनी में जूनियर निरीक्षक था, जो
विभिन्न प्रकार के निर्माण स्थलो फैक्टरियो , पुल , बाँध
तथा अन्य चीजों के लिए किराए पर निरीक्षक उपलब्ध कराती थी । महेद्र का काम , कार्य - स्थलों
में हो रहे कार्यों पर देखभाल करना था
। उसे अपने मुख्य कार्यालय के आदेश के अनुसार इधर - उधर जाते रहना था । कोयले की खान के क्षेत्र से किसी
रेलवे पुल - निर्माण के स्थल तक तथा वहाँ से कुछ महीनों के बाद किसी रसायन संयंत्र
पर काम करने जाना होता था ।
He was a bachelor . His needs were simple and he was able to
adjust himself to all kinds of odd conditions , whether it was an ill -
equipped circuit house or a makeshift canvas tent in the middle of a stone
quarry But one asset he had was his cook , Iswaran The cook was quite attached
to Mahendra and followed him uncomplainingly wherever he was posted . He cooked
for Mahendra , washed his clothes and chatted away with his master at night .
He could weave out endless stories and anecdotes on varied subjects
वह कुंवारा था । उसकी जरूरते सामान्य थी और हर
प्रकार की विषम दशाओं में अपने आपको
ढालने सक्षम था , चाहे कोई घटिया सर्किट घर हो और चाहे
पत्थरों की खदान के बीच कोई काम - चलाऊ तंबू । परंतु उसका रसोइया ईश्वरन उसके लिए
बड़े काम का आदमी था । रसोइए को महेद्र से काफी
लगाव था और जहाँ भी महेंद्र
का स्थानांतरण होता था तो वह उन्हीं के साथ खुश होकर जाता था । वह महेंद्र के लिए
भोजन पकाता , उनके कपड़े घोता तथा रात को उनके साथ गप्पे
मारता था । वह विभिन्न विषयों पर अनंत कहानियाँ ,किस्से बनाया
करता था
। Iswaran also had an amazing capacity
to produce vegetables and cooking ingredients , seemingly out of nowhere , in
the middle of a desolate landscape with no shops visible for miles around . He
would miraculously conjure up the most delicious dishes made with fresh vegetables
within an hour of arriving at the zinc - sheet shelter at the new workplace
ईश्वरन में एक अद्भुत क्षमता थी जिससे वह
सब्जियाँ व पकाने की अन्य वस्तुएँ न जाने कहाँ से उत्पन्न कर देता था । जहाँ मीलो
कोई दुकान नहीं दिखाई देती थी । वह जिंक शीट के नए आश्रय वाले कार्य - स्थल पर एक
घंटे के अंदर ताजी सब्जियों से बने स्वादिष्ट भोजन चमत्कारपूर्ण तरीके से तैयार कर
देत था।
Mahendra would be up early in the morning and leave for work
after breakfast, carrying some prepared food with him. Meanwhile Iswaran would
tidy up the shed, wash the clothes, and have a leisurely bath, pouring several
buckets of water over his head, muttering a prayer all the while. It would be
lunchtime by then. After eating, he would read for a while before dozing
off . The book was usually some popular Tamil thriller running to hundreds of
pages Its imaginative descriptions and narrative flourishes would hold Iswaran
in thrall .
महेंद्र प्रातः जल्दी उठकर नाश्ता करके अपने
काम पर चला जाता था । अपने साथ कुछ तैयार भोजन भी ले जाता था । इसी के मध्य मे
ईश्वरन छप्पर को बांधता , कपड़ों को धोता और फिर पानी की कई
बाल्टियों से मजे से नहाता था तथा इसके बाद कोई प्रार्थना भी गुनगुनाता था । इतने
में दोपहर के भोजन का वक्त हो जाता था । खाना खाकर सोने से पूर्व वह थोड़ी देर
पढ़ता है । वह अक्सर कई सौ पन्नो वाली तमिल भाषा की रोमान्चक कितब पढ़ता था । उसमे
दिए गए काल्पनिक वर्णन व वृत्तांत ईश्वरन के
ह्र्दय् पर छा जाते थे ।
His own
descriptions were greatly influenced by the Tamil authors that he read When he
was narrating even the smallest of incidents , he would try to work in suspense
and a surprise ending into the account . For example , instead of saying that
he had come across an uprooted tree on the highway , he would say , with
eyebrows suitabiy arched and hands held out in a dramatic gesture , " The
road was deserted and I was all alone Suddenly I spotted something that looked
like an enormous bushy beast lying sprawled across the road . I was half
inclined to turn and go back . But as I came closer I saw that it was a fallen
tree , with its dry branches spread out . " Mahendra would stretch himself
back in his canvas chair and listen Iswaran's tales uncritically
उसके स्वय के वृत्तांत तमिल लेखकों से अत्याधिक
प्रभावित होते थे जिन्हे वह पढ़ता था । जब भी वह किसी छोटी - सी भी घटना का वर्णन
करता था तो उसमें रहस्य और आश्चर्यजनकता उत्पन्न करने की कोशिश करता था । उदाहरण
के लिए जब उसे यह कहना होता कि उसने राजमार्ग ( सड़क ) पर जड़ से उखड़ा , वृक्ष देखा , वह भौहे चढ़ाकर तथा हाथों को नाटकीय
ढंग से हिलाकर कहता था- " सड़क रेगिस्तानी और मैं बिल्कुल अकेला । एकाएक सड़क
पर जब मैं कोई वस्तु देखता तो लगता था मानो कोई बड़ा भारी झाड़ीदार जानवर सड़क के
आर - पार पड़ा हुआ है । वापस लौटने का मेरा आधा मन हुआ । परंतु जब मैं निकट आया तो
देखा गिरा हुआ पेड़ था उसकी शाखाएं फैली हुई थीं । महेंद्र अपनी किरमिच की कुर्सी
पर लेटा हुआ ईश्वरन की कहानियों की आलोचना किए बिना सुनता रहता था ।
The place I come
from is famous for timber," Iswaran would begin. "There is a richly
wooded forest all around. The logs are hauled on to the lorries by elephants.
They are huge well-fed beasts. When they turn wild, even the most experienced
mahout is not able to control them." After this prologue Iswaran would
launch into an elaborate anecdote involving an elephant. "One day a tusker
escaped from the timber yard and began to roam about, stamping on bushes,
tearing up wild creepers and breaking branches at will. You know, sir, how an
elephant behaves when it goes mad." Iswaran would get so caught up in the
excitement of his own story that he would get up from the floor and jump about,
stamping his feet in emulation of the mad elephant.
जिस जगह का मैं रहने वाला हूँ ,ईश्वरन शुरू हो जाता था , ", वह स्थान इमारती
लकड़ी के लिए प्रसिद्ध है जहाँ बहुत विशाल घना जंगल है । लकड़ियाँ हाथियों द्वारा
ट्रकों पर लादी जाती हैं । वे विशाल हृष्ट - पुष्ट जानवर होते हैं । जब वे मदमस्त
हो जाते हैं तो बड़े - बड़े अनुभवी महावत भी उन पर काबू नहीं पा सकते । " इस
प्रस्तावना के बाद ईश्वरन हाथी से संबंधित कोई किस्सा कहने लगता है । “ एक दिन एक नर हाथी लकड़ियों के आहाते
से बच निकला और झाड़ियों को रौंदता हुआ जंगली बेलों को उखाड़ता हुआ टहनियों को
मनमर्जी से तोड़ता हुआ भ्रमण करने लगा । तुम जानते हो , श्रीमान , हाथी कैसा व्यवहार करता है , जब वह पागल हो जाता है । " अपनी
ही कहानी से उत्साहित होकर ईश्वरन मस्त हाथी की नकल करता हुआ फर्श पर उछल - कूद
करने लग जाता था । "
The elephant
reached the outskirts of our town ; breaking the fences down like matchsticks ,
" he would continue . " It came into the main road and smashed all
the stalls selling fruits , mud pots and clothes . People ran helter - skelter
in panic ! The elephant now entered a school ground where children were playing
, breaking barthrough the brick wall . All the boys ran into the classrooms and
shut the doors tight . The beast grunted and wandered about , pulling out the
football goal - post , tearing down the volleyball net , kicking and flattening
the drum kept for water , and uprooting the shrubs . Meanwhile all the teachers
had climbed up to the terrace of the school building , from there they
helplessly watched the depredations of the elephant . There was not a soul
below on the ground . The streets were empty as if the inhabitants of the
entire town had suddenly disappeared .
हाथी हमारे नगर के बाहर आ गया , दीवारों को माचिस की तीलियों की तरह
तोड़ रहा था " , उसने
जारी रखा । वह मुख्य सड़क पर आ गया था तथा फल की दुकानों , मिट्टी के बर्तन वाली दुकानों तथा
कपड़ों की दुकानों सभी को तहस - नहस कर डाला । लोग घबराकर इधर - उधर भागने लगे ।
अब हाथी ईंट की दीवार से होकर स्कूल के मैदान में आ गया , जहाँ बच्चे खेल रहे थे । सभी बच्चे
अध्ययन कक्ष में घुस गए और दरवाजे कसकर बंद कर लिए । हाथी चिंघाड़ता हुआ घूम रहा
था , फुटबॉल के गोल -
पोस्ट को खींचता हुआ वालीबॉल का नेट उखाड़ दिया और पानी का ड्रम ठोकर मारकर चपटा
बना दिया तथा सभी झाड़ियाँ उखाड़ डाली । इसी बीच सभी अध्यापक स्कूल की छत पर चढ़
गए । वहाँ से वे बेबस होकर हाथी की विनाश लीला देख रहे थे । मैदान में नीचे एक भी
व्यक्ति नहीं था । गलियाँ ऐसे खाली पड़ी थीं , मानो संपूर्ण नगर के निवासी अकस्मात् गायब हो गए हो ।
"
I was studying in the junior
class at that time , and was watching the whole drama from the rooftop . I
don't know what came over me suddenly . I grabbed a cane from the hands of one
of the teachers and ran down the stairs and into the open . The elephant
grunted and menacingly swung a branch of a tree which it held in its trunk . It
stamped its feet , kicking up a lot of mud and dust . It looked frightening .
But I moved slowly towards it , stick in hand . People were watching the scene
hypnotised from nearby housetops . The elephant looked at me red - eyed , ready
to rush towards me . It lifted its trunk and trumpeted loudly. At that moment I moved forward and,
mustering all my force, whacked its third toenail on the quick. The beast
looked stunned for a moment; then it shivered from head to foot- and collapsed."
" मैं उस समय छठी कक्षा में पढ़ता था , तथा छत के ऊपर से पूरा नाटक देख रहा था
। न जाने मुझे अचानक क्या सूझा एक अध्यापक के हाथ से छड़ी लेकर मैं सीढ़ियों से
नीचे उतरकर आँगन में आ गया । हाथी चिंघाड़ा और मुझे डराने के लिए टहनी हिलाई जो
उसने अपनी सूंड़ में पकड़ रखी थी । उसने जोर से धरती पर पाँव मारा जिससे खूब सारी
मिट्टी धूल उड़ी । उसे देखकर डर लगता था । परंतु मैं हाथ में डंडा पकड़े उसकी ओर
बढ़ा । लोग आस - पास के घरों के ऊपर से यह नजारा देख रहे थे । हाथी ने क्रोध से
मुझे देखा और वह मुझ पर टूट पड़ने को तत्पर था । वह अपनी सूंड़ उठाकर जोर से
चिंघाड़ा । उसी क्षण मैं उसकी ओर बढ़ा और अपनी पूरी शक्ति जुटाकर उसके तीसरे नाखून
पर जोर से डंडा मारा । क्षण भर के लिए हाथी हक्का - बक्का रह गया , फिर उसे कँपकँपी आई और वह लुढ़क गया ।
At this point
Iswaran would leave the story unfinished , and get up mumbling , " I will
be back after lighting the gas and warming up the dinner . " Mahendra who
had been listening with rapt attention would be left hanging . When he returned
, Iswaran would not pick up the thread of the story right away . Mahendra would
have remind him that the conclusion was pending . " Well , a veterinary
doctor was summoned to revive the animal , " Iswaran would shrug casually
. " Two days later it was led away by its mahout to the jungle . "
Well , how did you manage to do it , Iswaran - how did you bring down the beast
? " It has something to do with a Japanese art , I think , sir . Karate or
ju - jitsu it is called . I had read about it somewhere . It temporarily
paralyses the nervous system , you see . " Not a day passed without
Iswaran recounting some story packed with adventure , horror and suspense .
Whether the story was credible or not , Mahendra enjoyed listening to it
because of the inimitable way in which it was told . Iswaran seemed more than
make up for the absence of a TV in Mahendra's living quarters .
यहाँ पहुँचकर ईश्वरन कहानी को अधूरा छोड़कर
गुनगुनाता हुआ कहता है , “ मैं
गैस जलाकर और खाना गर्म करके अभी आया । ” महेंद्र जो कहानी को बड़े ध्यान से सुन रहा होता है , वह अधूरा रह जाता है । जब ईश्वरन लौटता
तो वह कहानी को शुरू न करता । महेंद्र उसे स्मरण कराता कि कहानी अभी समाप्त नहीं
हुई थी । तब ईश्वरन कहता “ हाँ
, हाथी का उपचार
करने एक पशु - चिकित्सक को बुलाया गया , दो दिनों बाद उसका महावत उसे जंगल में ले गया था । "अच्छा , तुमने ऐसा कैसे किया ईश्वरन्- तुमने इस
जानवर को कैसे गिरा दिया ?
" " इसका संबंध जापानी कला कराटे , जु - जित्सु से था । मैंने इसके बारे
में कहीं पढ़ा था । तुम जानते हो ,
इससे नाड़ी तंत्र अस्थायी रूप से शिथिल हो जाता है । " कोई भी
दिन ऐसा न बीतता था जिस दिन ईश्वरन ने कोई रोमांचक कहानी न सुनाए । चाहे कहानी
विश्वसनीय हो अथवा नहीं । महेंद्र को कहानी सुनाने में आनंद आता था क्योंकि ईश्वरन
के सुनाने का ढंग अजीब था । ईश्वरन के कारण महेंद्र को अपने आवासीय कमरों में टीवी
की कमी का अनुभव नहीं होता था ।
One moming when
Mahendra was having breakfast Iswaran asked , " Can I make something
special for dinner tonight , sir ? After all today is an auspicious day
according to tradition we prepare various delicacies to feed the spirits of our
ancestors today , sir That night Mahendra enjoyed the most delicious dinner and
complimented Iswaran on his culinary skills . He seemed very pleased but ,
unexpectedly , launched into a most garish account involving the supernatural
" You know , sir , this entire factory area we are occupying was once a
burial ground , " he started . Mahendra was jerked out of the pleasant
reverie he had drifted into after the satisfying meal " I knew on the
first day itself when I saw a human skull lying on the path Even now 1 come across a number of skulls and bones ,
" Iswaran continued He went on to narrate how he sometimes saw ghosts at
night . " I am not easily frightened by these things , sir . I am a brave
fellow . But one horrible ghost of a woman which appears off and on at midnight
during the full moon . It is an ugly creature with matted hair and a shrivelled
face , like a skeleton holding a foetus in its arms .
एक सुबह जब महेंद्र नाश्ता कर रहा था तो ईश्वरन
ने पूछा , श्रीमान्
, “ क्या आज रात
भोजन में कोई विशेष चीज बनाऊं ?
आज का दिन बहुत शुभ है-- परंपरा के अनुसार आज हम अपने पूर्वजों की
आत्माओं को तृप्त करने के लिए स्वादिष्ट पकवान तैयार करते हैं । उस रात महेंद्र ने
अत्यंत स्वादिष्ट व्यंजनों का मजा लिया तथा ईश्वरन की पाक कला की प्रशंसा की । वह
( ईश्वरन ) बहुत खुश प्रतीत हो रहा था परंतु अचानक उसने भूत - प्रेतों की कहानी
सुनानी शुरू कर दी थी । " श्रीमान , आप जानते हो , इस
फैक्ट्री का संपूर्ण क्षेत्र शमशान भूमि थी । " महेद्र को , जो कि सतोषजनक भोजन करने के पश्चात्
आनंद के ख्वाबो में डूब गया था ,
अचानक एक झटका सा लगा । " मैं तो उसी दिन यह जान गया था जब मुझे
रास्ते में पड़ी खोपड़ी व हड्डियाँ मिली । अभी भी मुझे बहुत सी खोपड़ियाँ व
हड्डियाँ मिल जाती है । " ,
ईश्वरन ने कहना जारी रखा । उसने सुनाना जारी रखा कि कैसे मुझे कभी -
कभी रात में भूत दिखाई देते हैं । " मैं , श्रीमान जी , इन
चीजो से आसानी से नहीं डरता । मैं एक बहादुर व्यक्ति हूँ । परंतु एक स्त्री का
भयानक भूत पूर्णिमा की आधी रात को दिखाई देता है ... वह कुरूप प्राणी है जिसके
उलझे बाल तथा चेहरे पर झुर्रियां पड़ी है तथा कंकाल की तरह है जो अपने हाथों में
भ्रूण लिए होती है ।
Mahendra shivered at the description and interrupted rather
sharply , " You are crazy , Iswaran . There are no such things as ghosts
or spirits . It is all a figment of your imagination . Get your digestive
system examined and may be your head as well . You are talking nonsense .
" He left the room and retired for the night , expecting Iswaran to sulk
for a couple of days . But the next morning he was surprised to find the cook
as cheerful and talkative as ever . From that day on Mahendra , for all his
brave talk , went to bed with a certain unease . Every night he peered into the
darkness outside through the window next to his bed , trying to make sure that
there was no movement of dark shapes in the vicinity . But he could only see a
sea of darkness with the twinkling lights of the factory miles away . He had
always liked to admire the milk - white landscape on full - moon nights . But
after hearing Iswaran's story of the female ghost he avoided looking out of his
window altogether when the moon was full .
महेंद्र यह वर्णन सुनकर कांप उठा और उसने आवेश
में आकर तेजी से रोक दिया- " तुम मूर्ख हो , ईश्वरन । प्रेत
या आत्मा नाम की कोई चीज नहीं होती । यह सब तुम्हारी कल्पना मात्र है । अपने पाचन
तंत्र को ठीक करो- और शायद अपने दिमाग को भी । तुम बकवास कर रहे हो । वह उठकर सोने
के लिए चला गया । यह सोचते हुए कि अब ईश्वरन दो तीन दिनों तक परेशान रहेगा । परंतु
अगली सुबह उस रसोइए को उतना ही प्रसन्न व बातूनी पाकर आश्चर्यचकित था । उस दिन से
महेंद्र को सोते समय कुछ बेचैनी रहने लगी । हर रात वह अपने बिस्तर के समीप वाली
खिड़की से बाहर अंधेरे में झाँकता था यह देखने के लिए कि आस - पास कोई छाया तो
नहीं घूम रही है । परंतु उसे अंधेरा ही अँधेरा दिखाई देता था तथा मीलों दूर
फैक्ट्रियों की टिमटिमाती रोशनियाँ । वह पूर्णिमा की चाँदनी रात में खुले सफेद भू
- दृश्य की बहुत प्रशंसा करता था । परंतु ईश्वरन की उस भूतनी की कहानी को सुनने के
पश्चात् पूर्णिमा की रात को खिड़की से बाहर झाँकने का उसमें हिम्मत न था ।
One
night , Mahendra was woken up from his sleep by a low moan close to his window
. At first he put it down to a cat prowling around for mice . But the sound was
too guttural
for a cat . He resisted the curiosity to look out lest he should behold a sight
which would stop his heart . But the wailing became louder and less feline . He
could not resist the temptation any more . Lowering himself to the level of the
windowsill , he looked out at the white sheet of moonlight outside . There ,
not too far away , was a dark cloudy form clutching a bundle . Mahendra broke
into a cold sweat and fell back on the pillow , panting . As he gradually
recovered from the ghastly experience , he began to reason with himself , and
finally concluded that it must have been some sort of auto suggestion , some
trick that his subconscious had played on him . एक रात , महेंद्र खिड़की
के समीप रोने की आवाज सुनकर नींद से जागा
। पहले तो उसने समझा कि कोई बिल्ली चूहे के लिए चारों ओर झपट्टा मार रही है ।
परंतु आवाज मानव कंठ की लगती थी जो बिल्ली की नहीं हो सकती थी । उसे बाहर देखने की
उत्सुकता हुई , परंतु उसे डर लग रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि
कोई छाया उसे जकड़ ले जिससे उसके दिल की धड़कन बंद हो जाएं ।लेकिन ध्वनि ऊंची होती
गई और स्पष्ट रूप से वह बिल्ली की नहीं थी । वह अपनी उत्सुकता को रोक न सका ।
खिड़की के समीप बैठकर उसने बाहर चाँदनी रात में झाँका । वहाँ थोड़ी दूर पर एक छाया
गठरी - सी उठाए खड़ी थी । महेंद्र को ठंडा पसीना आ गया और हाँफते हुए वह अपने तकिए
पर जा गिरा । धीरे - धीरे जब वह इस भयानक दृश्य के प्रभाव से उभरा तो उसने अपने मन
को समझाया कि वह उसके मन का भ्रम ही था ।
By the time he had got up in the morning , had a bath and
come out to have his breakfast , the horror of the previous night had faded
from his memory . Iswaran greeted him at the door with his lunch packet and his
bag . Just as Mahendra was stepping out Iswaran grinned and said , " Sir ,
remember the other day when I was telling you about the female ghost with a
foetus in its arms , you were so angry with me for imagining things ? Well ,
you saw her yourself last night . I came running hearing the sound of moaning
that was coming from your room ... A chill went down Mahendra's spine . He did
not wait for Iswaran to complete his sentence . He hurried away to his office
and handed in his papers , resolving to leave the haunted place the very next
day !
प्रात: जब वह
उठा , नहाया और नाश्ता करके अपने कमरे से बाहर आया तो रात वाली भयानक घटना
उसके मन से निकल चुकी थी । ईश्वरन ने दरवाजे पर उसका दोपहर के भोजन का पैकेट व
थैला थमाया । ज्यों ही महेंद्र ईश्वरन की ओर बढ़ रहा था , वह हँसा और बोला
, “ श्रीमान , जब मैंने आपको उस भूतनी औरत की बात सुनाई थी जो
अपने हाथ में भ्रूण लिए थी तो मेरे कहानी गढ़ने पर आप मुझसे क्रोधित हो गए थे ।
अच्छा , हुआ आपने कल रात उसे स्वयं देख लिया है । विलाप करती आवाज सुनकर मैं
दौड़कर आया था जो आपके कमरे से आ रही थी .. महेद्र की कँपकँपी छूट गई । उसने अपना
वाक्य पूरा बोलने के लिए ईश्वरन का इंतजार नहीं किया । वह शीघ्रता से अपने कार्यालय
गया तथा अपना त्यागपत्र दे दिया तथा उस भूत वाले स्थान को अगले दिन ही छोड़कर जाने
का निश्चय कर लिया ।
*************Edited by Snoj Kumar Maurya*****************
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