THE HERITAGE OF INDIA -BY A.L BASHAM
Ram Mohan Roy had sounded the theme with his passionate
advocacy of social reform ; Vivekananda repeated it with a more nationalist
timbre , when he declared that the highest form of service of the Great Mother
was social service . Other great Indians , chief of whom was Mahatma Gandhi ,
developed the theme of social service as a religious duty , and the development
continues under Gandhi ' s successors
राम मोहन राय ने अपनी प्रबल वकालत के द्वारा समाज - सुधार का शंखनाद किया
था विवेकानन्द ने इसको कहीं अधिक राष्ट्रीय स्वर में दुहराया था , जब
उन्होंने घोषणा की थी कि समाज सेवा मात्रभूमि
की सेवा का सर्वोच्च रूप है
। अन्य महान भारतीयों ने , जिनमें महात्मा गाँधी प्रमुख थे ,
समाज
- सेवा को एक धार्मिक कर्तव्य के रूप में विकसित किया और यह विकास गाँधीजी के उत्तराधिकारियों के द्वारा
जारी है ।
Mahatma Gandhi was looked on by many . both Indian and
European , as the epitome of Hindu tradition , but this is a false judgement
for he was much influenced Western ideas . Gandhi believed in the fundamentals
of his ancient culture , but his passionate love of the underdog and his
antipathy to caste , though not unprecedented in ancient India , were
unorthodox in the extreme , and owed more to European 19th century liberalism
than to anything Indian .
भारतीयों
एवं यरोपीयों दोनों के
द्वारा महात्मा
गाँधी को हिन्दू परम्परा की उच्चता का प्रतीक माना गया है किन्त यह एक गलत धारणा
है जैसे कि वे पश्चिमी
विचारा से आधक प्रभावित
थे । गाँधीजी अपनी प्राचीन संस्कृति के मूल
सिद्धान्तों में विश्वास करते थे किन्तु दलितों
के प्रति उनका प्रचंड प्रेम
तथा जाति - प्रथा के प्रति उनकी घृणा ,यदि प्राचीन भारत मे अनोखी नही थी, की भावना किसी भारतीय तत्व कि
अपेक्षा 19वीं शताब्दी के यूरोपीय
उदारवाद के अधिक ऋणी थी ।
His faith in non -
violence was , as we have seen , by no means typical of Hinduism - his
predecessor in revolt , the able Maratha Brahman B . G . Tilak , and Gandhi ' s
impatient lieutenant Subhash Chandra Bose , were far more orthodox in this
respect . For Gandhi ' s pacifism we must look to the ' Sermon on the Mount '
and to Tolstoy . His championing of women ' s right is also the result of
Western influence . In his social context , he was always rather an innovator
than a conservative .
अहिंसा में उनका विश्वास , जैसा
कि हम देख चुके हैं , निश्चित रूप से हिन्दू धर्म की विशेषता थी -
क्रान्ति में उनके पूर्वज , समर्थ मराठा ब्राह्मण बाल गंगाधर तिलक
और गाँधीजी के अधीर सहयोगी सुभाषचन्द्र बोस इस मामले में कहीं अधिक रूढ़िवादी थे ।
गाँधीजी के शान्तिवाद के लिए हमें ईसा के ' सरमन ऑन द
माउन्ट ' तथा टॉल्सटाय की ओर देखना चाहिए । स्त्रियों के अधिकारों के लिए उनका
एक आन्दोलन चलाना भी पश्चिमी प्रभाव का फल है । अपने सामाजिक सन्दर्भ से वे हमेशा
एक परम्परावादी न होकर एक आविष्कारक रहे ।
Though some of his colleagues thought his programme of
limited social reform too slow , he succeeded in shifting the whole emphasis of
Hindu thought towards a popular and equalitarian social order , in place of the
hierarchy of class and caste . Following up the work of many less well - known
19th century reformers , Gandhi and his followers of the Indian National Congress
have given new orientation and new life to Hindu culture , after centuries of
stagnation .
यद्यपि उनके कुछ साथी उनके सीमित समाज - सुधार
के कार्यक्रम को बहुत धीमा मानते थे तो भी वे हिन्दू विचारधारा के सम्पूर्ण प्रभाव
को वर्ग तथा जाति की परम्परा से हटाकर एक जनप्रिय व समता वाली सामाजिक व्यवस्था की
ओर मोड़ देने में सफल रहे । उन्नीसवीं शताब्दी के कम प्रसिद्ध सुधारकों के कार्य
को अपनाते हुए गाँधीजी व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वाले उनके अनुयायियों न ,
शताब्दियों
की निष्क्रियता के बाद , हिन्दू सभ्यता को एक नवीन दिशा एवं
जीवन दिया है
।
Today there are few Indians , whatever their creed , who do
not look back with Pride on their ancient culture , and there are few
intelligent Indians who are not willing to sacrifice some of its effete
elements so that India may develop and progress . Politically and economically
India faces many problems of great difficulty , and no one can forecast her
future with any certainty .
आज किसी भी वर्ग के शायद ही कोई भारतीय ऐसे
होंगे जो अपनी प्राचीन संस्कृति को गर्व से न देखते होंगे और शायद ही कोई ऐसे
बुद्धिमान भारतीय होंगे जो अपनी दुर्बलताओं का बलिदान करने को तैयार न हों ताकि
भारत विकसित हो और प्रगति करे । राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में भारत अनेक कठिन
समस्याओं का सामना कर रहा है तथा कोई भी उसके भविष्य के बारे में विश्वस्त रूप से
कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता है ।
But it is safe to predict that , whatever the future may be , the Indians of coming generations will not be unconvincing and self - conscious copies of Europeans , but will be men rooted in their traditions , and aware of the continuity of their culture . Already , after only seven years of Independence , the extremes of national self - denigration and fanatical cultural chauvinism are disappearing .
किन्तु विश्वस्त रूप से यह भविष्यवाणी की जा
सकती है कि भविष्य चाहे कुछ भी हो , आने वाली पीढियों के भारतीय
यूरोपवासियों की थोथी तथा बिना सोचे - समझे नकल करने वाले नहीं होंगे , किन्तु
वे ऐसे लोग होंगे जो अपनी परम्पराओं में जमे होंगे तथा अपनी संस्कृति की निरन्तरता
के प्रति जाग्रत होंगे । स्वतन्त्रता के केवल सात वर्ष उपरान्त ही अपने आपको
राष्ट्रीय स्तर पर बुरा कहने की प्रवृत्ति तथा केवल अपनी सभ्यता को जबरदस्ती अच्छा
मानने की उन्मत्त भावना अदृश्य हो रही है ।
We believe that Hindu civilization is in the act of
performing its most spectacular feat of synthesis . In the past , it has
received adapted and digested elements of many different cultures - Indo -
European , Mesopotamian , Iranian , Greek , Roman , Scythian , Turkish ,
Persian and Arab . With each new influence , it has somewhat changed . Now it
is well on the way to assimilating the culture of the West हम विश्वास करते
हैं कि हिन्दू सभ्यता संश्लेषण के अपने सबसे उत्कृष्ट चमत्कार को प्रदर्शित कर रही
है । भूतकाल में इसने विभिन्न सभ्यताओं - भारतीय , यूरोपीय ,
मेसोपोटामियन
, ईरानी , यूनानी , रोमन , सिथियन
, तुको , फारसा और अरबदेशीय - के तत्वों को पाया ,
अपनाया
और समावेश कर लिया । प्रत्येक नवीन प्रभाव के साथ यह कुछ न कुछ बदली है । अब यह
पश्चिमी सभ्यता का समावेश कर लेने की राह पर भली - भांति चल रहा है
Hindu civilization
will , we believe , retain its continuity . The Bhagwad Gata will not cease to
inspire men of action , and the Upanishads , men of thought . The charm and
graciousness of the Indian way of life will continue , however much affected it
may be by the labour - saving devices of the West . People will still love the
tales of the heroes of the Mahabharata and the Ramayana and of the loves of
Dushyanta and Shakuntala and Pururavas and Urvasi . The quiet and gentle
happiness which has at all times pervaded Indian life where oppression ,
disease and poverty have not overclouded it will surely not vanish before the
more hectic ways of the West .
हम विश्वास करते
हैं कि हिन्दु सभ्यता अपनी निरन्तरता को बनाये रखेगी । भगवत गीता कर्मप्रधान लोगों
को प्रेरणा देने का कार्य बन्द नहीं करेगी तथा उपनिषद् , विचारशील लोगों
को प्रेरणा देने का कार्य बन्द नहीं करेंगे । भारतीय पद्धति के जीवन का आकर्षण व
भव्यता बनी रहेगी चाहे इस पर पश्चिम की श्रम की बचत करन वाली युक्तियों का कितना
ही प्रभाव क्यों न पड़े । लोग अभी भी महाभारत एवं रामायण के नायकों की , दुष्यन्त
एवं शकुन्तला और पुरुरवा एवं उर्वशी की प्रेम गाथाओं को प्रेम किया करेंगे । एक
शान्त एवं सात्विक प्रसन्नता , जिसे अत्याचार , बीमारी एवं
निर्धनता भी ढक नहीं सकी है , जिसने भारतीय जीवन को हर युग में
प्लावित किये रखा है , पश्चिम की उत्तेजक प्रवृत्तियों के प्रभाव में
निश्चित रूप से कभी नष्ट नहीं होगी ।
Much that was useless in ancient Indian culture has already
perished . The extravagant and barbarous hecatombs of the Vedic age have long
since been forgotten , though animal sacrifice continues in some sects . Widows
have long ceased to be burnt on their husband ' s pyres . Girls may not by law
be married in childhood . In buses and trains all over India , Brahmans rub
shoulders with the lowest castes without consciousness of grave pollution , and
the temples are open to all by law Caste is vanishing ; the process began long
ago , but its pace is now so rapid that the more objectionable features of
caste may have disappeared within a generation or so . The old family system is
adapting itself to present - day conditions . In fact , the whole face of India
is altering , but the cultural tradition continues , and it will never be lost.
प्राचीन भारतीय संस्कृति में जो कुछ व्यर्थ था उसका बहुत कुछ
नष्ट हो चुका है । वैदिक काल की
अनुचित एवं बर्बर बलि
को बहोत लंबे समय पहले भुलाया जा चुका है , यद्यपि कुछ
वर्गों में पशुबलि जारी है । विधवाओं को उनके पति की चिताओं पर जलाया जाना कभी का
रोका जा चुका है । लड़कियों का बाल्यावस्था में विवाह कानूनन निषिद्ध है । सारे
भारतवर्ष में बसों में , रेलों में ब्राह्मण लोग बिना किसी
गम्भीर प्रदूषण के डर के ( अपवित्रता की चिन्ता किये बिना ) सबसे नीची जातियों के
साथ कंधे से कंधा रगड़ते ( सम्पर्क में आते ) हैं और कानून के द्वारा सबके लिए
मन्दिर खोल दिये गये हैं । जात - पाँत समाप्त होती जा रही है ; यह
प्रक्रिया बहुत पहले आरम्भ हुई , किन्तु अब इसकी गति इतनी तेज है कि एक
या दो पीढ़ी में जात - पाँत के अधिक आपत्तिजनक लक्षण गायब हो चुके होंगे । पुरानी
परिवार व्यवस्था अपने को आजकल की स्थितियों में ढाल रही है । वस्तुत : भारत का
सम्पूर्ण रूप परिवर्तित हो रहा है , किन्तु सांस्कृतिक परम्परा जारी है ,
और
यह कभी समाप्त नहीं होगी ।
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