On His Blindness by -John Milton


On His Blindness  by -John Milton





When I consider how my light is spent
Era half my days, in this dark world and wide,
And that one talent, which is death to hide,
Lodged with me useless, though my soul more bent
To serve therewith my Maker, and present
;My true account, lest, He returning chide;
'Doth God exact day-labour, light denied?'
I fondly ask: but patience, to prevent

जब मैं सोचता है कि इस अन्धकारपूर्ण तथा विस्तृत संसार में अपनी आधी आय परी करने से पहले मेरी आँखों की ज्योति किस प्रकार चली गई तथा काव्य - प्रतिभा जिसे छिपाना मृत्यु के समान है । मुझमे  बेकार पड़ी है . यदि मेरी आत्मा उस  प्रतिभा से रचयिता  की सेवा करने को आतुर है ।
और मैं अपना सही लेखा - जोखा उसके सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ ताकि मृत्यु के पश्चात् ( निर्णय के दिन ) ईश्वर मुझे फटकार नहीं । मैं मूर्खतापूर्वक पूछता हूँ , " क्या आँखों की ज्योति से वंचित करने के पश्चात् भी ईश्वर मुझसे दिन - भर परिश्रम कराने की आशा रखता है ?






That murmur, soon replies, 'God doth not need
Either man's work, or His own gifts, who best
Bear His mild yoke, they serve His best; His state
Is kingly: thousands at His bidding speed,
And post o'er land and ocean without rest;
They also serve who only stand and wait.'
इस बडबडाहट को रोकने के लिए धैर्य ( कवि की अन्तरात्मा ) ने शीघ्र उत्तर दिया , " इश्वर को न तो मनुष्य के द्वारा किये गये किसी कार्य की आवश्यकता है और न वह ( ईश्वर ) अपने उपहार के बदल कुछ चाहता है । ईश्वर की सच्ची सेवा वे ही व्यक्ति करते हैं जो उसके द्वारा दिये गये कष्टों को सर्वोत्तम डग से सहन करते हैं । ईश्वर का राज्य शाही है अर्थात उसकी स्थिति राजा जैसी है । उसके पास हजारा देवदूत हा व उसकी आजा का बिना आराम किये तरन्त पालन करने के लिए पृथ्वी तथा समुद्र में उपस्थित रहता स्वयं को ईश्वर की इच्छा पर छोड़ देते हैं , ईश्वर की सच्ची सेवा करते हैं ।

CENTRAL IDEA OF THE POEM
In this sonnet the poet loses his eyesight at the age of forty - four . The loss of his eyesight worries him very much . He cannot use his poetic talent in the active service of God . He complains that God cannot expect any service from him when He has taken away his eyesight . Soon he realizes his mistake . He feels that God does not want any return for His gifts . Thousands of angels work for Him on land and ocean . The only service to God is to bear patiently all the misfortunes

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