The Sermon at Benares by Betty Renshaw Hindi explanation

 The Sermon at Benares


About the Author

Betty Louise Renshaw Barber was born in Shannon, Mississippi on September 3, 1927, to P. C. and Lillian Renshaw.  She taught at the preschool level for several years, and eventually, she was able to pass her experiences on to others by teaching preschool teachers. Betty was just as active in showing Gods love as she was in talking about itshe was an overflow of encouragement, support, and kindness.

About the Lesson

‘The Sermon at Benares’. It is written by Betty Renshaw. It is a part of her book named ‘Values and Voices’. In this lesson ,she explained how a royal prince left his family back in the palace to find the truth behind all the sufferings in the world.


GAUTAMA Buddha ( 563 B.C. - 483 B.C. ) began life as a prince named Siddhartha Gautama , in northern India . At twelve , he was sent away for schooling in the Hindu sacred scriptures and four years later he returned home to marry a princess . गौतम बुद्ध ( 563 ई ० पू०-483 ई ० पू ० ) ने उत्तर भारत में अपना जीवन सिद्धार्थ गौतम नामक राजकुमार के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ किया था । बारह वर्ष की आयु में उन्हें हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थों के अध्ययन हेतु दूर भेज दिया गया था  और चार वर्ष बाद वह  एक राजकुमारी से विवाह करने घर वापस लौटे ।

 They had a son and lived for ten years as befitted royalty . At about the age of twenty - five , the Prince , heretofore shielded from the sufferings of the world , while out hunting chanced upon a sick man , then an aged man , then a funeral procession , and finally a monk begging for alms . उनके एक पुत्र हुआ और वे दस वर्ष तक राजसी ठाठ - बाट से रहे । पच्चीस वर्ष की आयु में , राजकुमार ने , जोकि संसार के दुःखो से बचाकर रखे गए थे , एक बार शिकार करने के दौरान एक बीमार व्यक्ति , फिर एक बूढ़े व्यक्ति और फिर एक अरथी और अन्ततः एक भिक्षु को भिक्षा माँगते हुए देखा ।

 These sights so moved him that he at once went out into the world to seek enlightenment concerning the sorrows he had witnessed . He wandered for seven years and finally sat down under a peepal tree , where he vowed to stay until enlightenment came . Enlightened after seven days , इन दृश्यों से ( वह ) इतने प्रभावित हुए कि वे उसी समय भिक्षु बनकर संसार में उन पीड़ाओं , जिन्हें उन्होंने देखा था , के निवारण हेतु ज्ञान प्राप्ति के लिए निकल पड़े । वे सात वर्ष तक भटकते रहे और अन्त में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए , जहाँ उन्होंने व्रत लिया कि वह तब तक बैठे रहेंगे जब तक उनको ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो जाती । ज्ञान की प्राप्ति सात दिन पश्चात हुई ।

 

 he renamed the tree the Bodhi Tree ( Tree of Wisdom ) and began to teach and to share his new understandings . At that point he became known as the Buddha ( the Awakened or the Enlightened ) . The Buddha preached his first sermon at the city of Benares , most holy of the dipping places on the River Ganges ; that sermon has been preserved and is given here . It reflects Buddha's wisdom about one inscrutable suffering .उन्होंने उस वृक्ष का नाम ' बो ' वृक्ष अर्थात् ज्ञान का वृक्ष रखा और उपदेश व अपनी नई उपलब्धियाँ बाँटनी प्रारम्भ कर दी । उस समय वह बुद्ध के नाम से जाने गए । बुद्ध ने अपना प्रथम धर्मोपदेश बनारस नगरी जो कि गंगा नदी का सबसे पवित्र तट है , में दिया । उस धर्मोपदेश को सुरक्षित रखा गया है और यहाँ पर इसे दिया गया है । यह गूढ़ और रहस्यमय दुःखों के बारे में बुद्ध के ज्ञान को दर्शाता है ।

Kisa Gotami had an only son , and he died . In her grief she carried the dead child to all her neighbours , asking them for medicine , and the people said , “ She has lost her senses . The boy is dead . किसा गौतमी के इकलौता बेटा था और वह मर गया । अपने दुःख में वह अपने मृत बेटे को सभी पड़ोसियों के पास ले गई और उनसे दवा माँगी और लोगों ने कहा , " यह अपनी सुध - बुध खो बैठी है । लड़का मर गया है ।

 ” At length , Kisa Gotami met a man who replied to her request , " I cannot give thee medicine for thy child , but I know a physician who can . " And the girl said , " Pray tell me , sir ; who is it ? " And the man replied , " Go to Sakyamuni , the Buddha . " Kisa Gotami repaired to the Buddha and cried , ” अन्ततः किसा गौतमी को एक व्यक्ति मिला जिसने उसके पूछने पर उत्तर दिया : " मैं तुम्हारे बालक के लिए तुम्हें दवा नहीं दे सकता किन्तु मैं एक वैद्य को जानता हूँ जो ऐसा कर सकता है । " और उस लड़की ने कहा , “ प्रार्थना करती हूँ , मुझे बताइए , श्रीमान ! वह कौन है ? ” और वह व्यक्ति बोला , “ शाक्यमुनि बुद्ध के पास जाओ । किसा गौतमी बुद्ध के पास गई और रोई ,

 " Lord and Master , give me the medicine that will cure my boy . " The Buddha answered , " I want a handful of mustard - seed . " And when the girl in her joy promised to procure it , the Buddha added , " The mustard - seed must be taken from a house where no one has lost a child , husband , parent or friend . " Poor Kisa Gotami now went from house to house , and the people pitied her and said , " Here is mustard - seed ; take it ! “ भगवान और मालिक , मुझे ऐसी दवा दो जो मेरे पुत्र को ठीक कर दे । बुद्ध ने उत्तर दिया , “ मुझे एक मुट्ठी सरसों के बीज चाहिए । और तब लड़की ने खुशी के मारे उन्हें लाने का वचन दिया तो बुद्ध ने आगे कहा , " सरसों के बीज ऐसे घर से लाए जाने चाहिए जहाँ किसी का बच्चा , पति , माता - पिता या मित्र नहीं मरा हो । बेचारी किसा गौतमी अब एक घर से दूसरे घर गई और लोगों ने उस पर दया दिखाई और कहा , “ ये रहे सरसों के बीज ; ले लो ।

 

 " But when she asked , " Did a son or daughter , a father or mother , die in your family ? " they answered her , " Alas ! the living are few , but the dead are many . Do not remind us of our deepest grief . " And there was no house but some beloved one had died in it . Kisa Gotami became weary and hopeless , and sat down at the wayside watching the lights of the city , as they flickered up and were extinguished again . ” किन्तु जब उसने पूछा , “ क्या तुम्हारे परिवार में कोई बेटा या बेटी , पिता या माता , कोई कभी मरा था ? ” वे उसको जवाब देते , “ ओह ! जिन्दा कम हैं , किन्तु मृतक कई हैं । हमें हमारे गहरे दुःख की याद मत दिलाओ । " और वहाँ कोई ऐसा घर नहीं था जहाँ कोई प्रिय व्यक्ति न मरा हो । किसा गौतमी थक गई और निराश हो गई और रास्ते के किनारे पर बैठकर शहर की बत्तियों को देखने लगी , जो टिमटिमाती थीं और फिर बुझ जाती थीं ।

 At last the darkness of the night reigned everywhere . And she considered the fate of men , that their lives flicker up and are extinguished again . And she thought to herself , " How selfish am I in my grief ! Death is common to all ; yet in this valley of desolation there is a path that leads him to immortality who has surrendered all selfishness . ”अन्त में रात के अन्धकार ने चारों ओर अपना साम्राज्य फैला दिया और फिर उसने मनुष्य की नियती / किस्मत के बारे में विचार किया कि उनका जीवन भी झिलमिलाता है और फिर बुझ जाता है और फिर उसने अपने आप में सोचा , “ मैं अपने दु : ख में कितनी स्वार्थी हो गई हूँ । मृत्यु सबके लिए समान है ; फिर भी इस दुःखमय संसार मे एक रास्ता है जो उस व्यक्ति को अमरता की तरफ ले जाता है जो अपना स्वार्थ त्याग देता है।

The Buddha said , " The life of mortals in this world is troubled and brief and combined with pain . For there is not any means by which those that have been born can avoid dying ; after reaching old age there is death ; of such a nature are living beings . As ripe fruits are early in danger of falling , बुद्ध ने कहा , “ इस संसार में नश्वरों का जीवन दुखों से भरा हुआ क्षणिक पीड़ा से पूर्ण है क्योंकि ऐसा कोई साधन नहीं है जिसके द्वारा जो पैदा हुआ है , वह मृत्यु से बच सके ; बुढ़ापा आने के बाद मौत आती है , सभी सजीव प्राणियों का स्वभाव ( प्रकृति ) यही है । जिस प्रकार पके हुए फलों का गिरने का खतरा होता है

So mortals when born are always of death. As all earthen vessels made by the potter end in being  broken  , so is the life of mortals . Both young and adult , both those who are fools and these who are wise , all fall into the power of death ; all are subject to death ., उसी प्रकार जब जीव पैदा होते हैं तो उनको मृत्यु का खतरा होता है । जिस प्रकार सभी मिट्टी के बर्तन का जो तुम्हारे ( कुम्हार ) द्वारा बनाए जाते हैं अन्त में टूट जाते हैं उसी प्रकार जीवन होता है । युवा एवं प्रौढ़ , वे दोनों मूर्ख हैं और जो बुद्धिमान हैं सभी मृत्यु के सामने टूट जाते हैं ; सभी मौत के अधीन हैं ।

Of those who , overcome by death , depart from life , a father cannot save his son , nor kinsmen their relations . Mark ! while relatives are looking on and lamenting deeply , one by one mortals are carried off , like an ox that is led to the slaughter . So the world is afflicted with death and decay , therefore the wise do not grieve , knowing the terms of the world . " Not from weeping nor from grieving will anyone obtain peace of mind लोग जिन पर मौत विजय प्राप्त कर लेती है , जीवन से चले जाते हैं , एक पिता अपने पुत्र को नहीं बचा सकता , न ही भाई और पतन अपने रिश्तेदारों को बचा सकते हैं । ध्यान रखो ! जब रिश्तेदार देख रहे होते हैं और गहन विलाप करते रहते हैं , एक - एक करके सभी लोग चले जाते जैसे की एक बछड़े को कसाई के यहाँ कटने के लिए ले जाया जाता है । इसलिए संसार मृत्यु पीड़ित है , इसलिए बुद्धिमान लोग शोक नहीं मनाते क्योंकि वे संसार के नियम को जानते हैं । बन्धु रोने और दुःख प्रकट करने से किसी को मन की शान्ति नहीं मिलेगी

, on the contrary , his pain will be the greater and his body will suffer . He will make himself sick and pale , yet the dead are not saved by his lamentation . He who seeks peace should draw out the arrow of lamentation , and complaint and grief ,; iइसके विपरीत उसका दर्द और ज्यादा बढ़ जाएगा और उसके शरीर को कष्ट होगा । वह स्वयं को कमजोर बीमार कर लेगा , फिर भी  मरे हुए लोग उसके विलाप से नहीं बचाए जा सकते वह व्यक्ति जो शान्ति चाहता है , उसे शोक , शिकायत और दुःख के तीर को बाहर निकालना चाहिए ।

 He who has drawn out the arrow and has become composed will obtain peace mind of mind, he who has overcome all sorrow will become free from sorrow , and be blessed . " वह व्यक्ति जिसने इस तीर को बाहर निकाल दिया है और दुखों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है ,शान्ति प्राप्त करेगा । वह जिसने सभी दुःखों को जीत लिया है , दुःखों से मुक्त हो जाएगा और सुखी हो जाएगा । "

[ Source : Betty Renshaw Values and Voices : A College Reader ( 1975 )

 

 

 

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1 Post a Comment:

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Khalid ms
admin
January 11, 2023 at 3:52 AM ×

Good keep it up

Congrats bro Khalid ms you got PERTAMAX...! hehehehe...
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