WEATHERING THE STORM IN ERSAMA -BY HARSH MANDER
On 27 October 1999, seven years after his mother's death, Prashant had gone to the block headquarters of Ersama, a small town in coastal Orissa, some eighteen kilometers from his village, to spend the day with a friend. In the evening, a dark and menacing storm quickly gathered. Winds beat against the houses with a speed and fury that Prashant had never witnessed before. Heavy and incessant rain filled the darkness; ancient trees were uprooted and crashed to the earth. Screams rent the air as people and houses were swiftly washed away. The angry waters swirled into his friend's house, neck deep. The building was of brick and mortar and was strong enough to survive the devastation of the wind's velocity of 350 km per hour. But the cold terror of the family grew with the crashing of trees that
: had got uprooted and fallen on their house , some time in the middle of the night , damaging its roof and walls
अपनी माँ की मृत्यु के सात वर्ष पश्चात् 27 अक्टूबर 1999 को प्रशांत गाँव से अठारह किमी की दूरी पर तटीय उड़ीसा के खंड मुख्यालय के एक छोटे से गाँव अरसामा में एक मित्र के साथ दिन बिताने के लिए गया । सायंकाल अकस्मात् तीव्रगति वाला एक काला भयानक तूफान आ गया । हवाएँ आक्रोश व तेज गति से मकानों पर थपेड़े मार रही थी । प्रशांत ने प्रत्यक्ष रूप से ऐसा पहले कभी नहीं देखा था । भारी तथा सतत् वर्षा ने अंधकार को और गहरा कर दिया तथा उसने वृक्षों को जड़ से उखाड़ दिया और जमीन पर गिरा दिया । चीखें हवा में समा गईं और घर तथा मकान शीघ्रता से धुल गए । उफान मारता पानी मित्र के घर में घुसकर घुमावदार बहने लगा जो गर्दन तक गहरा हो गया । इमारत ईंट व गारे की बनी थी तथा इतनी मजबूत थी कि उसने 350 किमी प्रति घंटा की गति वाली प्रलयकारी तूफानी हवाओं का मुकाबला किया , परंतु वृक्ष समूल उखड़कर घरों पर आ पड़े थे , जो आधी रात में छतों तथा दीवारों को क्षतिग्रस्त कर रहे थे जिससे घर के लोगों में दहशत व्याप्त हो गई थी ।
The crazed destruction wrought by the cyclone and the surge of the ocean continued for the next thirty - six hours , although wind speeds had reduced somewhat by the next morning . To escape the waters rising in the house , Prashant and his friend's family had taken refuge on the roof . Prashant will never forget the shock he experienced at his first glimpse of the devastation wrought by the super cyclone , in the grey light of the early morning . A raging , deadly , brown sheet of water covered everything as far as the eye could see ; only fractured cement houses still stood in a few places . Bloated animal carcasses and human corpses floated in every direction . All round even huge old trees had fallen . Two coconut trees had fallen on the roof of their house .
चक्रवात तथा सागरीय उफान से उत्पन्न भयानक विनाश लीला अगले छत्तीस घंटे तक चलती रही । हालांकि अगले दिन सुबह तक हवाओं की गति कम हो गई थी । घर में बढ़ रहे पानी से बचने के लिए प्रशांत और उसके मित्र के परिवार ने छत के ऊपर पनाह ले ली । प्रशांत कभी भी इस झटके को नहीं भूलेगा जो सुपर चक्रवात द्वारा हुए विनाश की पहली झलक थी जिसे उसने सुबह के स्लेटी प्रकाश में अनुभव किया था । जहाँ तक नजर पड़ती थी , क्रुद्ध व मृत्युकारी जल की भूरी चादर ने सभी चीजों को ढक रखा था , कुछ जगहों में टूटे हुए सीमेंट के घर अभी - भी खड़े थे । हर ओर जानवरों तथा मानवों के फूले हुए शव नज़र आ रहे थे । यहाँ तक कि चारों ओर विशालकाय पुराने वृक्ष भी गिर गए । थे । उनके घर की छत पर नारियल के दो पेड़ गिर गए थे ।
This was a blessing in disguise , because the tender coconuts from the trees kept the trapped family from starving in the several days that followed . For the next two days , Prashant sat huddled with his friend's family in the open on the rooftop . They froze in the cold and incessant rain ; the rain water washed away Prashant's tears . The only thought that flashed through his mind was whether his family had survived the fury of the super cyclone . Was he to be bereaved once again ?
यह एक वरदान भी था क्योंकि नारियल के मुलायम फलो ने कई दिनों तक फंसे हुए परिवार को भूखों मरने की नौबत आने की स्थिति से बचा लिया । अगले दो दिनों तक प्रशांत अपने मित्र के परिवार वालों के साथ छत के शीर्ष पर सटकर बैठा हुआ था । वे ठंड तथा लगातार बारिश के कारण जम से गए , वर्षा से प्रशांत के आँसू धुल गए । उसके मस्तिष्क में केवल एक ही विचार था क्या सुपर चक्रवात के आक्रोश के कारण उसका परिवार जीवित बचा होगा या नहीं ; क्या उसे एक बार पुन : उनकी हो जाने के कारण उनका विछोह सहना पड़ेगा ।
Two days later , which seemed to Prashant like two years , the rain ceased and the rain waters slowly began to recede . Prashant was determined to seek out his family without further delay . But the situation was still dangerous , and his friend's family pleaded with Prashant to stay back a little while longer . But Prashant knew he had to go . He equipped himself with a long , sturdy stick , and then started on his eighteen kilometre expedition back to his village through the swollen flood waters . It was a journey he would never forget . He constantly had to use his stick to locate the road , to determine where the water was most shallow . At places it was waist deep , and progress was slow . At several points , he lost the road and had to swim . After some distance , he was relieved to find two friends of his uncle who were also returning to their village . They decided to move ahead together दो दिन बाद , जो प्रशांत को दो साल की तरह प्रतीत हुए , वर्षा थम गई तथा वर्षा के जल का स्तर नीचे जाने लगा । अब प्रशांत ने अपने परिवार को बिना विलंब किए ढूँढ़ने का दृढ़ निश्चय किया । परंतु स्थिति अब भी खतरनाक थी तथा
उसके मित्र के परिवारजनों ने प्रशांत से थोड़ा और अधिक समय तक रुकने का अनुरोध किया , परंतु प्रशांत जानता था कि उसे जाना है । उसने एक लंबी मजबूत छड़ी ली तथा तूफान और बाढ़ से आए जल के बीच , अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थित अपने गाँव की ओर जाने का अभियान शुरू किया । यह ऐसी यात्रा थी जिसे वह कभी नहीं भूलेगा । सड़क की स्थिति तथा सर्वाधिक गहरे पानी के स्थान को जानने के लिए उसने निरंतर अपनी छड़ी का उपयोग किया । कई स्थानों पर पानी कमर के बराबर गहरा था तथा गति मंद पड़ गई थी । कई स्थानों पर वह सड़क से भटक जाता था , और उसे तैरना पड़ता था । कुछ दूरी तय करने के बाद उसे उस समय चैन मिल गया जब उसके चाचा जी के दो मित्र उसे मिल गए जो गाँव की ओर वापस आ रहे थे । उन्होंने एक साथ आगे जाने का निश्चय किया ।
As they waded through the waters , the scenes they witnessed grew more and more macabre . They had to push away many human bodies - men , women , children , and carcasses of dogs , goats and cattle that the current swept against them as they moved ahead . In every village that they passed , they could barely see a house standing . Prashant now wept out loud and long . He was sure that his family could not have survived this catastrophe .
Eventually , Prashant reached his village , Kalikuda . His heart went cold . Where their home once stood , there were only remnants of its roof . Some of their belongings were caught , mangled and twisted in the branches of trees just visible above the dark waters decided to go to the Red Cross shelter to look for his family . उन्होंने पानी में चलते समय जो दृश्य देखें , वे सर्वाधिक वीभत्स दिखते जा रहे थे । वे जैसे - जैसे आगे की ओर बढ़ते गए , वैसे - वैसे उन्हें बहाव की तीव्रता से उनकी ओर आने वाले पुरुषों , महिलाओं तथा कुत्ता , बकरियों तथा मवेशियों के शव को एक तरफ करना पड़ता था । जिन गाँवों से होकर वे गुजरते थे , उन्हें वहाँ मुश्किल से कोई बचा हुआ मकान दिखाई देता था । प्रशांत लंबे समय तक फूट - फूटकर रोता रहा । वह आश्वस्त था कि उस विनाशकारी दशा में उसका परिवार जीवित नहीं रहा होगा । अंतत : प्रशांत अपने गाँव कालीकुड़ा में पहुंच गया । उसका कलेजा ठंडा हो गया । जहाँ उसका मकान खड़ा था । वहाँ केवल छत के अवशेष पड़े थे । उनका कुछ सामान पकड़ा गया तथा कुछ पेड़ की शाखाओं में अटका हुआ , टूटा हुआ व मुड़ा हुआ काले जल के ऊपर दिखाई दे रहा था । प्रशांत ने अपने परिवार की खोज करने के लिए रेडक्रॉस शरण स्थल जाने का निश्चय किया
Among the first people he saw in the crowd was his maternal grandmother . Weak with
hunger , she rushed to him , her hands outstretched , her eyes brimming . It was a miracle . They had long given him up for dead . Quickly word spread and his extended family gathered around him , and hugged him tight in relief . Prashant anxiously scanned the motley , battered group . His brother and sister , his uncles and aunts , they all seemed to be there .
पहली भीड़ में नजर आने वाले लोगों के बीच उसकी नानी थी । भूख के कारण कमजोर हुई वह हाथ फैलाए अपने अश्रुपूर्ण नेत्रों से तीव्र गति से आगे बढ़ी । यह एक चमत्कार था । उन्होंने उसे काफी समय पहले मृतक समझ लिया था । शीघ्र ही यह समाचार फैल गया और उसके परिवार के अन्य सदस्य उसके आस - पास एकत्र हो गए तथा चैन की साँस लेते हुए उनका आलिंगन किया । प्रशांत ने चाहतवाली दृष्टि से उस मिश्रित तथा अव्यवस्थित दल को देखा । उसके भाई व बहन , उसके चाचा तथा चाचियाँ सभी वहाँ दिखाई पड़े ।
By the next morning , as he took in the desperate situation in the shelter , he decided to get a grip over himself . He sensed a deathly grief settling upon the 2500 strong crowd in the shelter . Eighty - six lives were lost in the village . All the ninety - six houses had been washed away . It was their fourth day at the shelter . So far they had survived on green coconuts , but there were too few to go around such a tumult of people .
अगली सुबह जैसे ही उसने शरण - स्थल की निराशाजनक स्थिति का जायजा लिया , उसने अपने ऊपर काबू रखने का निश्चय किया । उसने शरण - स्थल में शरण पाए हुए 2500 सशक्त लोगों की भीड़ के घातक दुःख का अनुभव किया । गाँव में छियासी लोगों का जीवन समाप्त हो चुका था । सभी छियानवे घर साफ हो गए थे । शरण - स्थल में यह उनका चौथा दिन था । अभी तक उन्होंने हरे नारियलों पर जीवनयापन किया था परंतु इतनी बड़ी अपार भीड़ के लिए उनकी संख्या कम पड़ गई थी ।
Prashant , all of nineteen years , decided to step in as leader of his village , if no one else did . He organised a group of youths and elders to jointly pressurise the merchant once again to part with his rice . This time the delegation succeeded and returned triumphantly , wading through the receding waters with food for the entire shelter . No one cared that the rice was already rotting . Branches from fallen trees were gathered to light a reluctant and slow fire , on which to cook the rice . For the first time in four days , the survivors at the cyclone shelter were able to fill their bellies . His next task was to organise a team of youth volunteers to clean the shelter of filth , urine , vomit and floating carcasses , and to tend to the wounds and fractures of the many who had been injured .
जब कोई दूसरा व्यक्ति नेता नहीं बना तब उन्नीस वर्षीय प्रशांत ने अपने गाँव का नेता बनने का निश्चय किया । उसने संयुक्त रूप से व्यापारी के ऊपर एक बार दोबारा चावल बाँटने के लिए दबाव देने हेतु नवयुवकों और व्यस्क पुरुषों के दल को संगठित किया । इस बार प्रतिनिधिमंडल को सफलता मिली और पानी के गिरते हुए स्तर के मध्य शरण - स्थलों के लिए खाद्य सामग्री लेकर विजयी होकर लौटे । किसी ने इस बात की परवाह नहीं की कि वह चावल पहले ही खराब होना शुरू हो गया था । उन्होंने गिरे हुए वृक्षों की शाखाएँ एकत्र की ताकि धीमी व अपेक्षित आग जलाई जा सके जिससे उसके ऊपर चावल उबाले जा सकें । चार दिनों में पहली बार शरणस्थल के जीवित शरणार्थियों ने भरपेट भोजन खाया । उसका अगला कार्य नवयुवक स्वयंसेवकों के दल को संगठित करना था ताकि वे शरणस्थल से गंदगी , पेशाब , उल्टियाँ और बहती हुई लाशों ( शवों ) को हटा सकें तथा घायल लोगों के घावों तथा टूटे अंगों का इलाज कर सकें ।
On the fifth day , a military helicopter flew over the shelter and dropped some food parcels . It then did not return . The youth task force gathered empty utensils from the shelter . Then they deputed the children to lie in the sand left by the waters around the shelter with these utensils on their stomachs , to communicate to the passing helicopters that they were hungry . The message got through , and after that the helicopter made regular rounds of the shelter , airdropping food and other basic needs . पाँचवें दिन सैन्य वायुयान शरण - स्थल के ऊपर उड़ा तथा खाने के कुछ पैकिट भी गिराए । फिर यह दुबारा नहीं वापिस आया । युवा कार्य - दल ने शरणस्थल से खाली बर्तन एकत्र किए । फिर उन्होंने बच्चों को शरण - स्थल के चारों ओर जहाँ से पानी हट गया था रेत के ऊपर , अपने पेटों के ऊपर खाली बर्तन रखकर लेटने के लिए तैयार किया ताकि ऊपर से गुजरते हुए वायुयानों को पता चल जाए कि वे भूखे हैं । यह संदेश पहुँच गया और उसके बाद वायुयानों ने शरण स्थल में नियमित दौरे किए और खाद्य सामग्री तथा अन्य मूलभूत आवश्यक वस्तुएँ नीचे गिराई ।
Prashant found that a large number of children had been orphaned. He brought them together and put up a polythene sheet shelter for them. Women were mobilised to look after them, while the men secured food and materials for the shelter.
प्रशांत ने देखा कि असंख्य बच्चे अनाथ हो गए थे । उसने उन्हें एकत्र किया और उनके लिए पोलीथीन की चादर लगाकर शरण स्थान बना दिया । उनकी देखभाल के लिए , महिलाओं को क्रियाशील बनाया गया जबकि पुरुष उनके लिए खाद्य सामग्री तथा अन्य जरूरी सामग्री सुरक्षित करते थे ।
As the weeks passed , Prashant was quick to recognise that the women and children were sinking deeper and deeper in their grief . He persuaded the women to start working in the food - for - work programme started by an NGO , and for the children he organised sports events . He himself loved to play cricket , and so he organised cricket matches for children . Prashant engaged , with other volunteers , in helping the widows and children to pick up the broken pieces of their lives . The initial government plan was to set up institutions for orphans and widows . However , this step was successfully resisted , as it was felt that in such institutions , children would grow up without love , and widows would suffer from stigma and loneliness
जैसे - जैसे सप्ताह बीतते गए , प्रशांत शीघ्र ही पहचान गया कि महिलाएँ व बच्चे अधिक दुःखित होते जा रहे हैं । उसने महिलाओं को काम के लिए भोजन कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सहमत कर लिया । जिसे एनजीओ ने शुरू किया और बच्चों के लिए उसने खेल - प्रतियोगिताओं का आयोजन किया । वह खुद क्रिकेट खेलना पसंद करता था । इसलिए उसने बच्चों के लिए क्रिकेट के मैच का आयोजन किया । प्रशांत अन्य स्वयं - सेवकों के साथ मिलकर विधवाओं और बच्चों की सहायता कार्य में जुट गया ताकि वे अपने जीवन के बिखरे टुकड़ों को सँभाल सकें । अनाथों व विधवाओं के लिए संस्थाएँ स्थापित करना , सरकार की प्रारंभिक योजना थी , परंतु इस कदम का सक्रियता से विरोध किया गया , क्योंकि यह महसूस किया गया कि इस प्रकार की संस्थाओं में पले हुए बच्चे प्रेम से वंचित रहेंगे , विधवाएँ कलंक व सूनेपन से ग्रस्त होगी
Prashant's group believed orphans should be resettled in their own community itself , possibly in new foster families made up of childless widows and children without adult care . It is six months after the devastation of the super cyclone . This time Prashant's wounded spirit has healed simply because he had no time to bother about his own pain . His handsome , youthful face is what the widows and orphaned children of his village seek out most in their darkest hour of grief .
प्रशांत के समूह का विश्वास था कि अनाथों को उन्हीं के समुदाय के अंदर पुनर्वासित किया जाए , संभावित रूप से उन्हें पोषक परिवारों में रखा जाए जो किसी वयस्क की देख - रेख में विशाल हों तथा जो संतानहीन विधवाओं तथा बच्चों से मिलकर बने हों । विशाल चक्रवात द्वारा की गई तबाही के बाद छ : माह का समय बीत गया है । इस बार प्रशांत की आहत भावना सामान्यत : ठीक हो गई क्योंकि अपने कष्टों को सहन करने का उसके पास समय नहीं था । उसके गाँव की विधवाएँ तथा अनाथ बच्चे भयानक दुःख के समय उसके आकर्षक , युवा चेहरे की ओर उम्मीद की दृष्टि से देखते हैं ।
On 27 October 1999, seven years after his mother's death, Prashant had gone to the block headquarters of Ersama, a small town in coastal Orissa, some eighteen kilometers from his village, to spend the day with a friend. In the evening, a dark and menacing storm quickly gathered. Winds beat against the houses with a speed and fury that Prashant had never witnessed before. Heavy and incessant rain filled the darkness; ancient trees were uprooted and crashed to the earth. Screams rent the air as people and houses were swiftly washed away. The angry waters swirled into his friend's house, neck deep. The building was of brick and mortar and was strong enough to survive the devastation of the wind's velocity of 350 km per hour. But the cold terror of the family grew with the crashing of trees that
: had got uprooted and fallen on their house , some time in the middle of the night , damaging its roof and walls
अपनी माँ की मृत्यु के सात वर्ष पश्चात् 27 अक्टूबर 1999 को प्रशांत गाँव से अठारह किमी की दूरी पर तटीय उड़ीसा के खंड मुख्यालय के एक छोटे से गाँव अरसामा में एक मित्र के साथ दिन बिताने के लिए गया । सायंकाल अकस्मात् तीव्रगति वाला एक काला भयानक तूफान आ गया । हवाएँ आक्रोश व तेज गति से मकानों पर थपेड़े मार रही थी । प्रशांत ने प्रत्यक्ष रूप से ऐसा पहले कभी नहीं देखा था । भारी तथा सतत् वर्षा ने अंधकार को और गहरा कर दिया तथा उसने वृक्षों को जड़ से उखाड़ दिया और जमीन पर गिरा दिया । चीखें हवा में समा गईं और घर तथा मकान शीघ्रता से धुल गए । उफान मारता पानी मित्र के घर में घुसकर घुमावदार बहने लगा जो गर्दन तक गहरा हो गया । इमारत ईंट व गारे की बनी थी तथा इतनी मजबूत थी कि उसने 350 किमी प्रति घंटा की गति वाली प्रलयकारी तूफानी हवाओं का मुकाबला किया , परंतु वृक्ष समूल उखड़कर घरों पर आ पड़े थे , जो आधी रात में छतों तथा दीवारों को क्षतिग्रस्त कर रहे थे जिससे घर के लोगों में दहशत व्याप्त हो गई थी ।
The crazed destruction wrought by the cyclone and the surge of the ocean continued for the next thirty - six hours , although wind speeds had reduced somewhat by the next morning . To escape the waters rising in the house , Prashant and his friend's family had taken refuge on the roof . Prashant will never forget the shock he experienced at his first glimpse of the devastation wrought by the super cyclone , in the grey light of the early morning . A raging , deadly , brown sheet of water covered everything as far as the eye could see ; only fractured cement houses still stood in a few places . Bloated animal carcasses and human corpses floated in every direction . All round even huge old trees had fallen . Two coconut trees had fallen on the roof of their house .
चक्रवात तथा सागरीय उफान से उत्पन्न भयानक विनाश लीला अगले छत्तीस घंटे तक चलती रही । हालांकि अगले दिन सुबह तक हवाओं की गति कम हो गई थी । घर में बढ़ रहे पानी से बचने के लिए प्रशांत और उसके मित्र के परिवार ने छत के ऊपर पनाह ले ली । प्रशांत कभी भी इस झटके को नहीं भूलेगा जो सुपर चक्रवात द्वारा हुए विनाश की पहली झलक थी जिसे उसने सुबह के स्लेटी प्रकाश में अनुभव किया था । जहाँ तक नजर पड़ती थी , क्रुद्ध व मृत्युकारी जल की भूरी चादर ने सभी चीजों को ढक रखा था , कुछ जगहों में टूटे हुए सीमेंट के घर अभी - भी खड़े थे । हर ओर जानवरों तथा मानवों के फूले हुए शव नज़र आ रहे थे । यहाँ तक कि चारों ओर विशालकाय पुराने वृक्ष भी गिर गए । थे । उनके घर की छत पर नारियल के दो पेड़ गिर गए थे ।
This was a blessing in disguise , because the tender coconuts from the trees kept the trapped family from starving in the several days that followed . For the next two days , Prashant sat huddled with his friend's family in the open on the rooftop . They froze in the cold and incessant rain ; the rain water washed away Prashant's tears . The only thought that flashed through his mind was whether his family had survived the fury of the super cyclone . Was he to be bereaved once again ?
यह एक वरदान भी था क्योंकि नारियल के मुलायम फलो ने कई दिनों तक फंसे हुए परिवार को भूखों मरने की नौबत आने की स्थिति से बचा लिया । अगले दो दिनों तक प्रशांत अपने मित्र के परिवार वालों के साथ छत के शीर्ष पर सटकर बैठा हुआ था । वे ठंड तथा लगातार बारिश के कारण जम से गए , वर्षा से प्रशांत के आँसू धुल गए । उसके मस्तिष्क में केवल एक ही विचार था क्या सुपर चक्रवात के आक्रोश के कारण उसका परिवार जीवित बचा होगा या नहीं ; क्या उसे एक बार पुन : उनकी हो जाने के कारण उनका विछोह सहना पड़ेगा ।
Two days later , which seemed to Prashant like two years , the rain ceased and the rain waters slowly began to recede . Prashant was determined to seek out his family without further delay . But the situation was still dangerous , and his friend's family pleaded with Prashant to stay back a little while longer . But Prashant knew he had to go . He equipped himself with a long , sturdy stick , and then started on his eighteen kilometre expedition back to his village through the swollen flood waters . It was a journey he would never forget . He constantly had to use his stick to locate the road , to determine where the water was most shallow . At places it was waist deep , and progress was slow . At several points , he lost the road and had to swim . After some distance , he was relieved to find two friends of his uncle who were also returning to their village . They decided to move ahead together दो दिन बाद , जो प्रशांत को दो साल की तरह प्रतीत हुए , वर्षा थम गई तथा वर्षा के जल का स्तर नीचे जाने लगा । अब प्रशांत ने अपने परिवार को बिना विलंब किए ढूँढ़ने का दृढ़ निश्चय किया । परंतु स्थिति अब भी खतरनाक थी तथा
उसके मित्र के परिवारजनों ने प्रशांत से थोड़ा और अधिक समय तक रुकने का अनुरोध किया , परंतु प्रशांत जानता था कि उसे जाना है । उसने एक लंबी मजबूत छड़ी ली तथा तूफान और बाढ़ से आए जल के बीच , अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थित अपने गाँव की ओर जाने का अभियान शुरू किया । यह ऐसी यात्रा थी जिसे वह कभी नहीं भूलेगा । सड़क की स्थिति तथा सर्वाधिक गहरे पानी के स्थान को जानने के लिए उसने निरंतर अपनी छड़ी का उपयोग किया । कई स्थानों पर पानी कमर के बराबर गहरा था तथा गति मंद पड़ गई थी । कई स्थानों पर वह सड़क से भटक जाता था , और उसे तैरना पड़ता था । कुछ दूरी तय करने के बाद उसे उस समय चैन मिल गया जब उसके चाचा जी के दो मित्र उसे मिल गए जो गाँव की ओर वापस आ रहे थे । उन्होंने एक साथ आगे जाने का निश्चय किया ।
As they waded through the waters , the scenes they witnessed grew more and more macabre . They had to push away many human bodies - men , women , children , and carcasses of dogs , goats and cattle that the current swept against them as they moved ahead . In every village that they passed , they could barely see a house standing . Prashant now wept out loud and long . He was sure that his family could not have survived this catastrophe .
Eventually , Prashant reached his village , Kalikuda . His heart went cold . Where their home once stood , there were only remnants of its roof . Some of their belongings were caught , mangled and twisted in the branches of trees just visible above the dark waters decided to go to the Red Cross shelter to look for his family . उन्होंने पानी में चलते समय जो दृश्य देखें , वे सर्वाधिक वीभत्स दिखते जा रहे थे । वे जैसे - जैसे आगे की ओर बढ़ते गए , वैसे - वैसे उन्हें बहाव की तीव्रता से उनकी ओर आने वाले पुरुषों , महिलाओं तथा कुत्ता , बकरियों तथा मवेशियों के शव को एक तरफ करना पड़ता था । जिन गाँवों से होकर वे गुजरते थे , उन्हें वहाँ मुश्किल से कोई बचा हुआ मकान दिखाई देता था । प्रशांत लंबे समय तक फूट - फूटकर रोता रहा । वह आश्वस्त था कि उस विनाशकारी दशा में उसका परिवार जीवित नहीं रहा होगा । अंतत : प्रशांत अपने गाँव कालीकुड़ा में पहुंच गया । उसका कलेजा ठंडा हो गया । जहाँ उसका मकान खड़ा था । वहाँ केवल छत के अवशेष पड़े थे । उनका कुछ सामान पकड़ा गया तथा कुछ पेड़ की शाखाओं में अटका हुआ , टूटा हुआ व मुड़ा हुआ काले जल के ऊपर दिखाई दे रहा था । प्रशांत ने अपने परिवार की खोज करने के लिए रेडक्रॉस शरण स्थल जाने का निश्चय किया
Among the first people he saw in the crowd was his maternal grandmother . Weak with
hunger , she rushed to him , her hands outstretched , her eyes brimming . It was a miracle . They had long given him up for dead . Quickly word spread and his extended family gathered around him , and hugged him tight in relief . Prashant anxiously scanned the motley , battered group . His brother and sister , his uncles and aunts , they all seemed to be there .
पहली भीड़ में नजर आने वाले लोगों के बीच उसकी नानी थी । भूख के कारण कमजोर हुई वह हाथ फैलाए अपने अश्रुपूर्ण नेत्रों से तीव्र गति से आगे बढ़ी । यह एक चमत्कार था । उन्होंने उसे काफी समय पहले मृतक समझ लिया था । शीघ्र ही यह समाचार फैल गया और उसके परिवार के अन्य सदस्य उसके आस - पास एकत्र हो गए तथा चैन की साँस लेते हुए उनका आलिंगन किया । प्रशांत ने चाहतवाली दृष्टि से उस मिश्रित तथा अव्यवस्थित दल को देखा । उसके भाई व बहन , उसके चाचा तथा चाचियाँ सभी वहाँ दिखाई पड़े ।
By the next morning , as he took in the desperate situation in the shelter , he decided to get a grip over himself . He sensed a deathly grief settling upon the 2500 strong crowd in the shelter . Eighty - six lives were lost in the village . All the ninety - six houses had been washed away . It was their fourth day at the shelter . So far they had survived on green coconuts , but there were too few to go around such a tumult of people .
अगली सुबह जैसे ही उसने शरण - स्थल की निराशाजनक स्थिति का जायजा लिया , उसने अपने ऊपर काबू रखने का निश्चय किया । उसने शरण - स्थल में शरण पाए हुए 2500 सशक्त लोगों की भीड़ के घातक दुःख का अनुभव किया । गाँव में छियासी लोगों का जीवन समाप्त हो चुका था । सभी छियानवे घर साफ हो गए थे । शरण - स्थल में यह उनका चौथा दिन था । अभी तक उन्होंने हरे नारियलों पर जीवनयापन किया था परंतु इतनी बड़ी अपार भीड़ के लिए उनकी संख्या कम पड़ गई थी ।
Prashant , all of nineteen years , decided to step in as leader of his village , if no one else did . He organised a group of youths and elders to jointly pressurise the merchant once again to part with his rice . This time the delegation succeeded and returned triumphantly , wading through the receding waters with food for the entire shelter . No one cared that the rice was already rotting . Branches from fallen trees were gathered to light a reluctant and slow fire , on which to cook the rice . For the first time in four days , the survivors at the cyclone shelter were able to fill their bellies . His next task was to organise a team of youth volunteers to clean the shelter of filth , urine , vomit and floating carcasses , and to tend to the wounds and fractures of the many who had been injured .
जब कोई दूसरा व्यक्ति नेता नहीं बना तब उन्नीस वर्षीय प्रशांत ने अपने गाँव का नेता बनने का निश्चय किया । उसने संयुक्त रूप से व्यापारी के ऊपर एक बार दोबारा चावल बाँटने के लिए दबाव देने हेतु नवयुवकों और व्यस्क पुरुषों के दल को संगठित किया । इस बार प्रतिनिधिमंडल को सफलता मिली और पानी के गिरते हुए स्तर के मध्य शरण - स्थलों के लिए खाद्य सामग्री लेकर विजयी होकर लौटे । किसी ने इस बात की परवाह नहीं की कि वह चावल पहले ही खराब होना शुरू हो गया था । उन्होंने गिरे हुए वृक्षों की शाखाएँ एकत्र की ताकि धीमी व अपेक्षित आग जलाई जा सके जिससे उसके ऊपर चावल उबाले जा सकें । चार दिनों में पहली बार शरणस्थल के जीवित शरणार्थियों ने भरपेट भोजन खाया । उसका अगला कार्य नवयुवक स्वयंसेवकों के दल को संगठित करना था ताकि वे शरणस्थल से गंदगी , पेशाब , उल्टियाँ और बहती हुई लाशों ( शवों ) को हटा सकें तथा घायल लोगों के घावों तथा टूटे अंगों का इलाज कर सकें ।
On the fifth day , a military helicopter flew over the shelter and dropped some food parcels . It then did not return . The youth task force gathered empty utensils from the shelter . Then they deputed the children to lie in the sand left by the waters around the shelter with these utensils on their stomachs , to communicate to the passing helicopters that they were hungry . The message got through , and after that the helicopter made regular rounds of the shelter , airdropping food and other basic needs . पाँचवें दिन सैन्य वायुयान शरण - स्थल के ऊपर उड़ा तथा खाने के कुछ पैकिट भी गिराए । फिर यह दुबारा नहीं वापिस आया । युवा कार्य - दल ने शरणस्थल से खाली बर्तन एकत्र किए । फिर उन्होंने बच्चों को शरण - स्थल के चारों ओर जहाँ से पानी हट गया था रेत के ऊपर , अपने पेटों के ऊपर खाली बर्तन रखकर लेटने के लिए तैयार किया ताकि ऊपर से गुजरते हुए वायुयानों को पता चल जाए कि वे भूखे हैं । यह संदेश पहुँच गया और उसके बाद वायुयानों ने शरण स्थल में नियमित दौरे किए और खाद्य सामग्री तथा अन्य मूलभूत आवश्यक वस्तुएँ नीचे गिराई ।
Prashant found that a large number of children had been orphaned. He brought them together and put up a polythene sheet shelter for them. Women were mobilised to look after them, while the men secured food and materials for the shelter.
प्रशांत ने देखा कि असंख्य बच्चे अनाथ हो गए थे । उसने उन्हें एकत्र किया और उनके लिए पोलीथीन की चादर लगाकर शरण स्थान बना दिया । उनकी देखभाल के लिए , महिलाओं को क्रियाशील बनाया गया जबकि पुरुष उनके लिए खाद्य सामग्री तथा अन्य जरूरी सामग्री सुरक्षित करते थे ।
As the weeks passed , Prashant was quick to recognise that the women and children were sinking deeper and deeper in their grief . He persuaded the women to start working in the food - for - work programme started by an NGO , and for the children he organised sports events . He himself loved to play cricket , and so he organised cricket matches for children . Prashant engaged , with other volunteers , in helping the widows and children to pick up the broken pieces of their lives . The initial government plan was to set up institutions for orphans and widows . However , this step was successfully resisted , as it was felt that in such institutions , children would grow up without love , and widows would suffer from stigma and loneliness
जैसे - जैसे सप्ताह बीतते गए , प्रशांत शीघ्र ही पहचान गया कि महिलाएँ व बच्चे अधिक दुःखित होते जा रहे हैं । उसने महिलाओं को काम के लिए भोजन कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सहमत कर लिया । जिसे एनजीओ ने शुरू किया और बच्चों के लिए उसने खेल - प्रतियोगिताओं का आयोजन किया । वह खुद क्रिकेट खेलना पसंद करता था । इसलिए उसने बच्चों के लिए क्रिकेट के मैच का आयोजन किया । प्रशांत अन्य स्वयं - सेवकों के साथ मिलकर विधवाओं और बच्चों की सहायता कार्य में जुट गया ताकि वे अपने जीवन के बिखरे टुकड़ों को सँभाल सकें । अनाथों व विधवाओं के लिए संस्थाएँ स्थापित करना , सरकार की प्रारंभिक योजना थी , परंतु इस कदम का सक्रियता से विरोध किया गया , क्योंकि यह महसूस किया गया कि इस प्रकार की संस्थाओं में पले हुए बच्चे प्रेम से वंचित रहेंगे , विधवाएँ कलंक व सूनेपन से ग्रस्त होगी
Prashant's group believed orphans should be resettled in their own community itself , possibly in new foster families made up of childless widows and children without adult care . It is six months after the devastation of the super cyclone . This time Prashant's wounded spirit has healed simply because he had no time to bother about his own pain . His handsome , youthful face is what the widows and orphaned children of his village seek out most in their darkest hour of grief .
प्रशांत के समूह का विश्वास था कि अनाथों को उन्हीं के समुदाय के अंदर पुनर्वासित किया जाए , संभावित रूप से उन्हें पोषक परिवारों में रखा जाए जो किसी वयस्क की देख - रेख में विशाल हों तथा जो संतानहीन विधवाओं तथा बच्चों से मिलकर बने हों । विशाल चक्रवात द्वारा की गई तबाही के बाद छ : माह का समय बीत गया है । इस बार प्रशांत की आहत भावना सामान्यत : ठीक हो गई क्योंकि अपने कष्टों को सहन करने का उसके पास समय नहीं था । उसके गाँव की विधवाएँ तथा अनाथ बच्चे भयानक दुःख के समय उसके आकर्षक , युवा चेहरे की ओर उम्मीद की दृष्टि से देखते हैं ।
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