THE HOME-COMING - by Rabindranath Tagore
Phatik Chakravorti was ringleader among
the boys of the village. A new mischief got into his head. There was a heavy
log lying on the mud-flat of the river waiting to be shaped into a mast for a
boat. He decided that they should all work together to shift the log by main
force from its place and roll it away. The owner of the log would be angry and
surprised, and they would all enjoy the fun. Every one seconded the proposal,
and it was carried unanimously.
फटिक
चक्रवर्ती गाँव के लड़कों के बीच मे अगुआ था था। एक नयी शरारत उसके दिमाग में आई। एक भारी
बल्ली नदी के समतल
कीचड़ में पड़ा हुई थी । जो कि एक नाव के चप्पू के
लिये रखा गया था। उसने निश्चय किया कि वे सब मिलकर एक
कम करेंगे कि उस बल्ली
को पूरी ताकत से उसकी जगह से दूर लुढ़का
देंगे। इस बल्ली का मालिक क्रोधित होगा और आश्चर्यचकित
होगा तथा वे सब मज़ाक का आनंद लेंगे। प्रत्येक ने सेकंडों
मे इस प्रस्ताव को मान लिया और सर्वसम्मति से ऐसा
किया गया।
But just as the fun was about to begin,
Mākhan, Phatik's younger brother, sauntered up and sat down on the log in front
of them all without
a word. The boys were puzzled for a moment. He was pushed, rather timidly, by one of
the boys and told to get up; but he remained quite unconcerned. He
appeared like a young philosopher meditating on the futility of games.
Phatik was furious. "Mākhan," he cried, "if you don't get down this minute
I'll thrash you!"
लेकिन
जैसे ही आनंद प्रारम्भ होने वाला था , माखन, फटिक का छोटा भाई घूमते हुए आया और उन
सबके सामने बिना कुछ कहे उस बल्ली पर पर बैठ गया। एक क्षण के
लिए वे लड़के आश्चर्यचकित थे। उनमें से एक लड़के के द्वारा डरते-डरते उसे उठाने के लिए धक्का दे
दिया लेकिन वह काफी बेपरवाह ही रहा। वह एक छोटे
दार्शनिक की तरह खेलों की निरर्थकता पर ध्यान लगाता रहा। फटिक क्रोधित
था वह चिल्लाया, “माखन अगर तुम इसी क्षण नहीं उठे
तो मैं तुम्हें पीट
दूँगा ।”
Mākhan only moved to a more comfortable
position. Now, if Phatik was to keep his regal dignity before the public, it
was clear he
ought to carry out his threat. But his courage failed him at the crisis. His fertile
brain, however, rapidly seized upon a new manœuvre which would discomfit his brother and afford
his followers an added
amusement. He gave the word of command to roll the log and Mākhan over together. Mākhan heard
the order and made it a point of honour to stick on. But he overlooked
the fact, like those who attempt earthly fame in other matters, that there was
peril in it.
माखन केवल और आरामदायक स्थिति मे बैठ गया। अब यदि फटिक को अपना राजशाही गौरव सबके सामने रखना था, तो यह साफ था कि उसे अपनी धमकी को पूरा
करना था। लेकिन संकट के समय उसका साहस जवाब दे गया। उसका
शातिर दिमाग किसी तरह से नयी चालाकी जो उसके भाई को दुख तथा उसके अनुयाइयों को
आनंद देता बनाने मे बहुत जल्द बंद होगया
था ऐसा लगा कि उसका
शातिर दिमाग। उसने आदेश दिया कि बल्ली के साथ माखन को भी लपेटकर लुढ़का दिया
जाये। माखन-ने यह आदेश सुना और अपने बैठे रहने पर अपना सम्मान समझा। लेकिन उसने तथ्य की अनदेखी इस तरह कर
दी, जैसे कोई व्यक्ति सांसारिक प्रसिद्धि
के लिए उससे जुड़े जोखिम को उठा लेता है।
The boys began to heave at the log with
all their might, calling out,
"One, two, three, go!" At the
word "go" the log went; and with it went
Mākhan's philosophy, glory and all.
The other boys shouted themselves hoarse
with delight. But Phatik was a
little frightened. He knew what was
coming. And, sure enough, Mākhan
rose from Mother Earth blind as Fate and
screaming like the Furies. He
rushed at Phatik and scratched his face
and beat him and kicked him, and
then went
crying home. The first act of the drama was over.
लड़कों
ने अपनी पूरी एक , दो , तीन, कहते हुए ताकत से बल्ली को
जोर लगाना प्रारम्भ किया गो
बोलते हुए उठाना शुरू किया और शब्द (गो) जाओ बोलते ही लट्ठा चला गया; और माखन का ध्यान, उसकी प्रतिष्ठा सब-कुछ चला गया। सभी
अन्य लड़के अपनी कर्कश आवाज में खुशी मनाने लगे लेकिन फटिक थोड़ा डर गया था। वह
समझ गया था कि क्या होने वाला था? और
जैसा कि उसे यकीन था, माखन आवेश में जमीन पर से उठा। वह फटिक
की तरफ दौड़ा और उसका मुंह नोंच लिया तथा उसे पीटा व लात मारी, और फिर रोते हुए घर चला गया। नाटक का
पहला अंक समाप्त हो चुका था।
Phatik wiped his face, and sat down on
the edge of a sunken barge by the
river bank, and began to chew a piece of
grass. A boat came up to the
landing and a middle-aged man, with grey
hair and dark moustache,
stepped on shore. He saw the boy sitting
there doing nothing and asked
him where the Chakravortis lived. Phatik
went on chewing the grass and
said: "Over there," but it was
quite impossible to tell where he
pointed. The stranger asked him again.
He swung his legs to and fro on
the side of the barge and said: "Go
and find out," and continued to chew
the grass as
before.
फटिक
ने अपना चेहरा पोंछा तथा नदी किनारे एक
जलमगन नांव के किनारे बैठ गया। एक नाव किनारे पर आकर रुकी और एक मध्यम उम्र का व्यक्ति, जिसके सफेद बाल और काली पूँछे थीं, किनारे पर उतरा। उसने वहाँ खाली बैठे
हुए लड़के को देखा और उससे पूछा कि चक्रवर्ती कहाँ रहते थे। फटिक घास चबाता रहा और
बोला, “वहाँ’ लेकिन यह पता लगाना असंभव था कि उसका इशारा किस तरफ था। उस अजनबी ने
दोबारा पूछा। वह अपने पैर को इधर-उधर घुमाता रहा और बोला, जाओ और ढूंढ़ लो और पहले की तरह घास
चबाता रहा।
But now a servant came down from the
house and told Phatik his mother
wanted him. Phatik refused to move. But
the servant was the master on
this occasion. He took Phatik up roughly
and carried him, kicking and
struggling
in impotent rage.
लेकिन
अब एक नौकर घर से आया और फटिक को बताया कि उसकी माँ उसे बुला रही थी। फटिक ने जाने
से इनकार कर दिया। लेकिन नौकर इस अवसर पर मालिक था । वह जबरदस्ती फटिक को ले
गया जबकि वह गुस्से मे संघर्ष करते हुए लात मार रहा था।
When Phatik came into the house, his
mother saw him. She called out
angrily: "So you have been hitting
Mākhan again?"
Phatik answered indignantly: "No, I
haven't! Who told you that?"
His mother shouted: "Don't tell
lies! You have." Phatik said sullenly: "I tell you, I haven't. You
ask Mākhan!" But Mākhan thought it best to
stick to his previous statement.
जब फटिक घर में आया, उसकी
माँ ने उसे देखा। वह गुस्से से बोली, “तो तुम फिर माखन को पीट रहे थे ?” फटिक
ने गुस्से
से उत्तर दिया, “नहीं
मैंने नहीं मारा; आपसे यह किसने कहा?” . उसकी
माँ चीखी, “झूठ मत बोलो! तुमने मारा है।” फटिक
ने चिड़चिड़ेलपंन कहा, “मैं आपसे कह रहा हूँ कि मैंने नहीं मारा। आप
माखन से पूछ लो।” लेकिन माखन ने सोचा कि वह अपनी पहले वाली बात
पर अडिग रहना
ही अच्छा है।
He said:
"Yes, mother. Phatik did hit
me."
Phatik's patience was already exhausted.
He could not bear this
injustice. He rushed at Mākhan and
hammered him with blows: "Take
that,"
he cried, "and that, and that, for telling lies."
उसने कहा, “हाँ, माँ। फटिक ने तो मुझे पीटा था ।” फटिक
का धैर्य पहले ही समाप्त हो चुका था। वह इस अन्याय को नहीं सहन कर सकता था। वह माखन की तरफ दौड़ा और यह
कहते हुए उस पर घोंसे से वार किये-“ये
ले” “और
ले, और ले, झूठ बोलने के लिए।
His mother took Mākhan's side in a
moment, and pulled Phatik away,
beating him with her hands. When Phatik
pushed her aside, she shouted
out:
"What! you little villain! Would you hit your own mother?"
उसकी
माँ ने उसी क्षण माखन की तरफदारी की और फटिक अपने हाथों से पीटते
हुए फटिक को दूर धकेला ।
जब फटिक ने उन्हें अपने से अलग किया, तो
वह चीखी, “क्या, तुम छोटे खलनायक ! क्या तू अब अपनी खुद माँ को भी मरेगा ?”
It was just at this critical juncture
that the grey-haired stranger
arrived. He asked what was the matter.
Phatik looked sheepish and ashamed.
But when his mother stepped back and
looked at the stranger, her anger
was changed to surprise. For she
recognized her brother and cried: "Why,
Dada! Where have you come from?"
उसी जटिल परिस्थिति में एक भूरेब बालों वाला अजनबी आ पहुँचा। उसने पूछा कि क्या
बात है। फटिक डरा और शर्म से देखने लगा। लेकिन जब उसकी माँ ने पीछे मुड़कर उस
अजनबी को देखा, तो उनका गुस्सा आश्चर्य में बदल गया, क्योंकि
उसने अपने भाई को पहचान लिया था और बोली, “क्यों दादा! आप कहाँ से आये?’
As she said these words, she bowed to
the ground and touched his feet.
Her brother had gone away soon after she
had married; and he had started
business in Bombay. His sister had lost
her husband while he was there.
Bishamber had now come back to Calcutta
and had at once made enquiries
about his sister. He had then hastened
to see her as soon as he found
out where
she was. ’
ये शब्द कहते-कहते वे जमीन पर झुकी और उनके पैर छुए। जैसे ही उनकी
शादी हुई थी उनके भाई चले गये थे और उन्होंने बॉम्बे में अपना व्यवसाय शुरू कर
दिया था। जब वे बॉम्बे में थे तो उनकी बहन के पति की मृत्यु हो गयी। बिशम्भर अब
कलकत्ता वापस आ गये थे और तुरंत उन्होंने अपनी बहन के बारे में पता किया। और जैसे
ही उन्हें अपनी बहन के बारे में पता चला वे उससे मिलने चले आये थे।
The next few days were full of
rejoicing. The brother asked after the
education of the two boys. He was told
by his sister that Phatik was a
perpetual nuisance. He was lazy, disobedient,
and wild. But Mākhan was
as good as gold, as quiet as a lamb, and
very fond of reading.
Bishamber kindly offered to take Phatik
off his sister's hands and
educate him with his own children in
Calcutta. The widowed mother
readily agreed. When his uncle asked
Phatik if he would like to go to
Calcutta with him, his joy knew no
bounds and he said: "Oh, yes, uncle!"
in a way
that made it quite clear that he meant it. ’
अगले
कुछ दिन बड़ी प्रसन्नता से बीते। भाई ने दोनों लड़कों की शिक्षा के बारे में पूछा।
उसे उसके बहन के द्वारा बताया गया कि फटिक तो बिल्कुल बेकार है। वह कामचोर, कहना न मानने वाला और उपद्रवी था।
लेकिन माखन सोने के समान अच्छा था, वह
भेड़ मेमने के समान सज्जन और पढ़ने में मन लगाने वाला था। बिशम्भर ने दयालुता
से फटिक को अपनी बहन से अपने साथ ले जाने को कहा और अपने बच्चों के साथ कलकत्ता ले
जाकर पढ़ाने की बात कही। विधवा माँ तुरन्त मान गयी। जब फटिक के मामा ने उसे अपने
साथ कलकत्ता ले जाने की बात की तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा, और वह बोला, “ओह, हाँ, मामा जी।’ एक तरीके से ऐसा लगता था कि जैसे वह
यही चाहता था।
It was an immense relief to the mother
to get rid of Phatik. She had a
prejudice against the boy, and no love
was lost between the two
brothers. She was in daily fear that he
would either drown Mākhan some
day in the river, or break his head in a
fight, or run him into some
danger. At the same time she was a
little distressed to see Phatik's
extreme
eagerness to get away.
माँ
के लिए फटिक से छुटकारा पाना अत्यधिक आरामदायक था। दोनों भाइयों में कोई प्यार न
होना, उसके मन को क्षति पहुँचाता था। उसके मन
में हमेशा यह डर बना रहता था कि किसी दिन वह माखन को नदी में डुबो देगा या लड़ाई
में उसका सिर फोड़ देगा या उसे किसी-न-किसी खतरे में फैसा देगा। साथ ही वह फटिक की
जाने की उत्सुकता को देखकर निराश भी रहती थी।
Phatik, as soon as all was settled, kept
asking his uncle every minute
when they were to start. He was on pins
and needles all day long with
excitement and lay awake most of the
night. He bequeathed to Mākhan, in
perpetuity, his fishing-rod, his big
kite, and his marbles. Indeed, at
this time of
departure, his generosity towards Mākhan was unbounded.
फटिक, जब सब-कुछ निश्चित हो गया, तो बार-बार अपने मामा से पूछने लगा कि
कब चलेंगे। वह पूरे दिन प्रफुल्लित और तैयार रहता तथा अक्सर रात को भी जगा रहता।
उसने अपनी मछली पकड़ने की छड़ी, अपनी
बड़ी पतंग और अपने कंचे सब माखन को विरासत में दे दिए थे। वास्तव में, इस जाने के समय उसकी माखन के प्रति
उदारता असीमित थी।
When they reached Calcutta, Phatik made
the acquaintance of his aunt for
the first time. She was by no means
pleased with this unnecessary
addition to her family. She found her own
three boys quite enough to
manage without taking any one else. And
to bring a village lad of
fourteen into their midst was terribly
upsetting. Bishamber should
really have thought twice before
committing such an indiscretion.
जब
वे कलकत्ता पहुँचे तो फटिक पहली बार अपनी मामी से परिचित किया गया। वह अपने परिवार में
अनावश्यक बढ़ोतरी देखकर बिल्कुल भी खुश नहीं थी। वह बड़ी मुश्किल से अपने तीन
लड़कों का प्रबंध कर पाती थी। और एक चौदह वर्ष के गाँव के लड़के का उनके बीच आ
जाना बहुत अप्रिय था। बिशम्भर को इस तरह का कार्य करने से पहले कम-से-कम दो बार
सोचना चाहिए था।
In this world of human affairs there is
no worse nuisance than a boy at
the age of fourteen. He is neither
ornamental nor useful. It is
impossible to shower affection on him as
on a little boy; and he is
always getting in the way. If he talks
with a childish lisp he is called
a baby, and if he answers in a grown-up
way he is called impertinent. In
fact any talk at all from him is
resented.
इस मानवीय संसार के झमेलों में, एक
लड़का जिसकी उम्र चौदह साल हो, इससे बड़ी कोई परेशानी नहीं हो सकती। न तो वह
आकर्षक (सजावटी) होता है न ही उपयोगी। उसके ऊपर एक बच्चे की तरह प्यार बरसाना
असंभव होता है, और वह हमेशा रास्ते में आता रहता है। यदि वह एक
बच्चे की तरह बात करता है तो उसे बच्चा कहा जाता है और अगर वे एक बड़े व्यक्ति की
तरह व्यवहार करता है तो उसे दुष्ट कहा जाता है। शायद उसकी हर तरह की बात का बुरा माना जाता है।
Then he is at the
Then he is at the
unattractive, growing age. He grows out
of his clothes with indecent
haste; his voice grows hoarse and breaks
and quavers; his face grows
suddenly angular and unsightly. It is
easy to excuse the shortcomings of
early childhood, but it is hard to
tolerate even unavoidable lapses in a
boy of fourteen. The lad himself becomes
painfully self-conscious. When
he talks with elderly people he is
either unduly forward, or else so
unduly shy
that he appears ashamed of his very existence.
तब
वह एक नीरस बढ़ती हुई उम्र में होता है। वह अपने
कपड़ों की अपेक्षा बहुत तेजी से बढ़ता है; उसकी
आवाज कर्कश हो जाती है और वह अटक-अटककर काँपने वाली हो जाती है और उसका चेहरा अचानक से तिरछा असमतल हो जाता है प्रारंभिक बचपन की
गलतियों को माफ करना आसान होता है। लेकिन एक चौदह साल के लड़के की गलतियों को सहन
करना काफी मुश्किल ,यहाँ तक कि अनिवार्य हो जाता है। लड़को स्वयं दर्द से संकोची हो जाता है। जब वह बड़े लोगों
से बात करता है तो या तो घबराहट में ढीठ हो जाता है या बेचैन होकर शर्माने लगता है
या फिर उसे अपने अस्तित्व पर बहुत शर्मिन्दगी होने लगती है।
Yet it is at this very age when, in his
heart of hearts, a young lad
most craves for recognition and love;
and he becomes the devoted slave
of any one who shows him consideration.
But none dare openly love him,
for that would be regarded as undue
indulgence and therefore bad for
the boy. So, what with scolding and
chiding, he becomes very much like a
stray dog
that has lost his master.
जबकि
इस उम्र में उसके दिल में होता है कि उसे प्यार और पहचान मिले और वह उस व्यक्ति का
समर्पित दास बन जाता है जो उस पर ध्यान देता है। लेकिन कोई भी खुले रूप से उस पर
प्यार दर्शाता नहीं है। क्योंकि उसे अनुचित आसक्ति माना जाता है जो कि उस लड़के के
लिए सही नहीं होगा। इसलिए,
क्या डाँटना और तिरस्कार करना, वह काफी हद तक आवारा कुत्ते के समान हो
जाता है जो अपने मालिक कों खो चुका होता है ।
For a boy of fourteen his own home is
the only Paradise. To live in a
strange house with strange people is
little short of torture, while the
height of bliss is to receive the kind
looks of women and never to be
slighted by
them.
एक चौदह साल के लड़के के लिए उसका खुद का घर एक स्वर्ग के समान होता है। एक अजनबी घर में अजनबियों के साथ रहना एक छोटे से अत्याचार के समान था, किसी स्त्री के द्वारा प्यार से बात या व्यवहार किया जाना परमानन्द की चरमसीमा था और उसके द्वारा कभी भी तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए
एक चौदह साल के लड़के के लिए उसका खुद का घर एक स्वर्ग के समान होता है। एक अजनबी घर में अजनबियों के साथ रहना एक छोटे से अत्याचार के समान था, किसी स्त्री के द्वारा प्यार से बात या व्यवहार किया जाना परमानन्द की चरमसीमा था और उसके द्वारा कभी भी तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए
It was anguish to Phatik to be the
unwelcome guest in his aunt's house,
despised by this elderly woman and
slighted on every occasion. If ever
she asked him to do anything for her, he
would be so overjoyed that he
would overdo it; and then she would tell
him not to be so stupid, but to
get on with
his lessons. ।
यह फटिक के लिए (पीड़ा की) दुःखद था कि वह अपनी
मामी के घर अवांछनीय था, हर मौके पर वह इस बुजर्ग औरत द्वारा
तिरस्कृत किया जाता था। जब भी वह उससे कुछ करने को कहती तो वह इतना खुश हो जाता कि
कुछ ज्यादा ही कर देता और फिर भी उसे बताती कि इतने बेवकूफ मत बनो बल्कि अपनी
पढ़ाई पर (पाठ) ध्यान दो।।
The cramped atmosphere of neglect
oppressed Phatik so much that he felt
that he could hardly breathe. He wanted
to go out into the open country
and fill his lungs with fresh air. But
there was no open country to go
to. Surrounded on all sides by Calcutta
houses and walls, he would dream
night after night of his village home
and long to be back there. He
remembered the glorious meadow where he
used to fly his kite all day
long; the broad river-banks where he
would wander about the live-long
day singing and shouting for joy; the
narrow brook where he could go and
dive and swim at any time he liked.
अपनी मामी के घर में उपेक्षा के तंगं वातावरण ने
फटिक पर इतना जुल्म किया कि उसे ऐसा लगता था कि साँस लेना भी मुश्किल है। वह खुले
गाँव में जाकर अपने फेफड़ों से स्वतन्त्र साँस लेना चाहता था। लेकिन वहाँ कोई खुला
गाँव नहीं था। कलकत्ता में चारों तरफ दीवारें और घर बने हुए थे। वह हर रात अपने
गाँव वापस जाने के सपने देखा करता। उसे वह शानदार चरागाह याद आते जहाँ वह पूरे दिन
पतंग उड़ाया करता था; चौड़ा नदी का किनारा जहाँ वह गाते और चिल्लाते
हुए खुशी से पूरा दिन बिताता था; छोटा सँकरा झरना जहाँ वह कभी भी जब वह चाहे
डुबकी मार सकता था और तैर सकता था।
He thought of his band of boy
companions over whom he was despot; and,
above all, the memory of that
tyrant mother of his, who had such a
prejudice against him, occupied him
day and night. A kind of physical love
like that of animals, a longing
to be in the presence of the one who is
loved, an inexpressible
wistfulness during absence, a silent cry
of the inmost heart for the
mother, like the lowing of a calf in the
twilight,--this love, which was
almost an animal instinct, agitated the
shy, nervous, lean, uncouth and
ugly boy. No one could understand it,
but it preyed upon his mind
continually.
उसे
अपने समूह के साथी लड़के याद आते जिनमें वह तानाशाह था; और सबसे ज्यादा,उसे अपनी आततायी माँ की याद आती, जिसने उसके विरुद्ध पक्षपात किया था, यही विचार उसे दिन-रात (काम में लगाये
रहते) परेशान करते रहते। एक तरह। का शारीरिक प्रेम जैसा कि जानवरों में होता है, किसी ऐसे के सामने होना जिससे आप प्यार
करते हों; किसी के न होने पर न प्रकट करने योग्य
उत्कंठा; एक शान्त चीख जो दिल से उसकी माँ को
याद करती थी, शाम के समय एक बछड़े के सँभाने के समान
थी; यह प्यार जो कि एक जानवर के रूप में
स्वाभाविक था, वे उस शर्मीले, बेचैन, पतले, भद्दे और कुरूप लड़के को उत्तेजित कर
देते थे। कोई भी इसे समझ नहीं सकता था, लेकिन
उसका दिमाग लगातार इसी का शिकार था या इसी में रमा हुआ था।
There was no more backward boy in the
whole school than Phatik. He gaped
and remained silent when the teacher
asked him a question, and like an
overladen ass patiently suffered all the
blows that came down on his
back. When other boys were out at play,
he stood wistfully by the window
and gazed at the roofs of the distant
houses. And if by chance he espied
children playing on the open terrace of
any roof, his heart would ache
with
longing.
पूरे स्कूल में फटिक से ज्यादा पिछड़ा हुआ कोई
लड़का नहीं था। जब भी अध्यापक उससे प्रश्न पूछते उसका मुँह खुला और शान्त रह जाता
और एक अतिरिक्त भार से लदे हुए गधे के समान वह धैर्यपूर्वक उन सभी वारों को सहन कर
जाता जो उस पर पड़ते थे। जब सब लड़के बाहर खेल रहे होते तो वह जिज्ञासा से खिड़की
के पास खड़ा हो जाता तथा दूर घरों की छतों को देखा करता और अगर संयोगवश वह बच्चों
को खुली छत पर खेलते हुए देख लेता तो उसका दिल भी इच्छाओं से भर जाता।
One day he summoned up all his courage
and asked his uncle: "Uncle, when
can I go home?"
His uncle answered: "Wait till the
holidays come."
But the holidays would not come till
October and there was a long time
still to
wait.
एक
दिन उसने अपनी पूरी हिम्मत जुटाकर अपने मामा से कहा, “मामाजी, मैं घर कब जा सकता हूँ? उसके मामा ने उत्तर दिया, “जब तक छुट्टियाँ हों तब तक प्रतीक्षा
करो।” लेकिन छुट्टियाँ तो नवम्बर तक नहीं
आयेंगी और अभी एक लम्बे समय तक इन्तजार करना पड़ेगा।
One day Phatik lost his lesson book. Even
with the help of books he had
found it very difficult indeed to
prepare his lesson. Now it was
impossible. Day after day the teacher
would cane him unmercifully. His
condition became so abjectly miserable
that even his cousins were
ashamed to own him. They began to jeer
and insult him more than the
other boys. He went to his aunt at last
and told her that he had lost
his book.
एक
दिन फटिक की अभ्यास-पुस्तिका खो गयी। यहाँ तक कि अपनी किताबों की सहायता से भी उसे
अपना पाठ समझने में कठिनाई हो रही थी। अब यह असंभव था। दिन प्रतिदिन अध्यापक
निर्दय होकर उसे पीटते। उसकी ऐसी हालत हो गयी कि उसके ममेरे भाइयों को भी अब उस पर
शर्म आने लगी। वे दूसरे लड़कों से भी ज्यादा उसे चिढ़ाने और बेइज्जत करने लगे।
आखिरकार वह अपनी मामी के पास गया और बोला कि उससे उसकी अभ्यास-पुस्तिका खो गयी है।
His aunt pursed her lips in contempt and
said: "You great clumsy,
country lout! How can I afford, with all
my family, to buy you new books
five times a month?"
That night, on his way back from school,
Phatik had a bad headache with
a fit of shivering. He felt he was going
to have an attack of malarial
fever. His one great fear was that he
would be a nuisance to his aunt.
उसकी मामी ने गुस्से से अपने होठ भींच
लिये और बोली तुम बहुत पागल, गॅवार हो मैं अपने परिवार के साथ कैसे तुम्हारा
एक महीने में पाँच बार किताबों का खर्चा उठा सकती हूँ?
उस रात स्कूल से वापस घर आते हुए, फटिक
को भयंकर सिरदर्द के साथ काँपते हुए दौरा पड़ गया। उसे लगा कि उसे मलेरिया बुखार
का असर हो गया है। उसे सबसे ज्यादा डर इस बात का था कि उसकी मामी इसे उसी की
बेवकूफी कहेगी।
The next morning Phatik was nowhere to
be seen. All searches in the
neighbourhood proved futile. The rain
had been pouring in torrents all
night, and those who went out in search
of the boy got drenched through
to the skin.
At last Bishamber asked help from the police.
अगली
सुबह फटिक कहीं भी दिखायी नहीं दिया। आस-पड़ोस में ढूंढ़ने से कुछ भी पता नहीं चला
सब बेकार हो गया। पूरी रात बारिश होती रही थी और जो भी लड़के को ढूँढ़ने गये वे
पूरी तरह भीग गये। आखिर में बिशम्बर ने पुलिस की मदद ली
At the end of the day a police van stopped
at the door before the house.
It was still raining and the streets
were all flooded. Two constables
brought out Phatik in their arms and
placed him before Bishamber. He
was wet through from head to foot, muddy
all over, his face and eyes
flushed red with fever and his limbs
trembling. Bishamber carried him in
his arms and took him into the inner
apartments. When his wife saw him
she exclaimed: "What a heap of
trouble this boy has given us! Hadn't you
better send him home?"
दिन के आखिर में एक पुलिस वैन उनके घर
के सामने रुकी। अभी भी बारिश हो रही थी और गलियों में पानी भर गया था। दो
पुलिसवाले फटिक को अपनी भुजाओं में लेकर आए और बिशम्भर के आगे रख दिया। वह पूरी
तरह भीगा हुआ, कीचड़ से सना हुआ था, उसका
चेहरा और आँखें बुखार से लाल हो गये थे और उसका पूरा शरीर (मांसपेशियाँ) काँप रहा
था। बिशम्भर उसे गोदी में उठाकर अन्दर लेकर गये। उसकी पत्नी ने जब उसे देखा, तो
बोली, इस लड़के ने हमें परेशान कर दिया है। क्या अधिक
अच्छा नहीं होगा कि तुम उसे उसके घर भेज दो?
”
Phatik heard her words and sobbed out
loud: "Uncle, I was just going
home; but they dragged me back
again."
The fever rose very high, and all that
night the boy was delirious.
Bishamber brought in a doctor. Phatik
opened his eyes, flushed with
fever, and looked up to the ceiling and
said vacantly: "Uncle, have the
holidays come yet?"
Bishamber wiped the tears from his own
eyes and took Phatik's lean and
burning hands in his own and sat by him
through the night. The boy began
again to mutter. At last his voice
became excited: "Mother!" he cried,
"don't beat me like that....
Mother! I _am_ telling the truth!"
फटिक ने उनके शब्द सुनकर रोते-रोते जोर
से कहा मामाजी, मैं घर ही जा रहा था, लेकिन
ये मुझे वापस यहाँ घसीट लाए। बुखार बहुत तेज हो गया और लड़का पूरी रात तपता रहा
बिशम्बर ने डॉक्टर को बुलाया, फटिक ने अपनी बुखार से भरी आँखें खोलीं और छत
की तरफ देखते हुए शान्ति से कहा, मामा जी क्या अभी तक छुट्टियाँ नहीं हुई हैं।
क्या मैं घर जा सकता हूँ? बिशम्भर ने अपने आँसू पोंछे और फटिक के पतले
जलते हुए हाथों को पकड़कर पूरी रात उसके पास बैठे रहे। लड़का फिर बड़बड़ाने लगा।
आखिरकार उसकी आवाज उत्तेजित हो गयी, वह चीखा,
माँ मुझे ऐसे मत मारो।“माँ”, मैं
सच बोल रहा हूँ।
The next day Phatik became conscious for
a short time. He turned his
eyes about the room, as if expecting
some one to come. At last, with an
air of disappointment, his head sank back
on the pillow. He turned his
face to the wall with a deep sigh.
Bishamber knew his thoughts and bending
down his head whispered:
"Phatik, I have sent for your
mother."
The day went by. The doctor said in a troubled
voice that the boy's
condition was very critical.
अगले दिन थोड़ी देर के लिए लड़के को
होश आया।
उसने
कमरे में अपनी नजर घुमाई,
जैसे कि उसे किसी के आने की आशा हो।
आखिरकार निराशा के साथ उसका सिर वापस तकिये पर लुढ़क गया। उसने अपना चेहरा दीवार
की तरफ कर लिया और एक गहरी साँस ली। बिशम्भर उसके मन की बात समझ गये थे, अपना सिर नीचे करके, धीरे से बोले फटिक मैंने तुम्हारी माँ
को बुलवाया है। वह दिन बीत गया। डॉक्टर ने चिन्ताग्रस्त आवाज में कहा कि लड़के की
हालत बहुत नाजुक है।
Phatik began to cry out: "By the
mark--three fathoms. By the mark--four
fathoms. By the mark----." He had
heard the sailor on the river-steamer
calling out the mark on the plumb-line.
Now he was himself plumbing an
unfathomable sea.
Later in the day Phatik's mother burst
into the room, like a whirlwind,
and began to toss from side to side and
moan and cry in a loud voice.
फटिक जोर से चिल्लाने लगा, “वह
निशान! तीन फैदम। वह निशान:::::::::::::”चार फैदम। वह निशान:::::::” उसने
नदी में स्टीमर के नाविक को साहुल रेखा के पास यह बोलते हुए सुना था। अब वह स्वयं
अथाह सागर की गहराई नाप रहा था। अगले दिन फटिक की माँ चक्रवात की तरह कमरे में
प्रविष्ट हुई और तेज आवाज में इधर-से-उधर गिरकर विलाप करने लगी
Bishamber tried to calm her agitation,
but she flung herself on the bed,
and cried: "Phatik, my darling, my
darling."
Phatik stopped his restless movements
for a moment. His hands ceased
beating up and down. He said:
"Eh?"
The mother cried again: "Phatik, my
darling, my darling."
Phatik very slowly turned his head and
without seeing anybody said:
"Mother, the holidays have
come."
बिशम्भर ने उनकी बेचैनी को शान्त करने का प्रयास किया लेकिन वह उसके पलंग से चिपककर चिल्लाने लगी, फटिक
मेरा प्रिय मेरा प्रिय
फटिक अपनी बेचैनी में एक क्षण रुका। उसके हाथ ऊपर नीचे होने बन्द हो गए। उसने कहा, आह? उसकी माँ फिर चीखी, फटिक मेरा प्रिय मेरा प्रिय। फटिक ने बहुत धीरे से अपना सिर घुमाया और बिना किसी की तरफ देखे, बोला, “माँ छुट्टियाँ आ गयी हैं।
फटिक अपनी बेचैनी में एक क्षण रुका। उसके हाथ ऊपर नीचे होने बन्द हो गए। उसने कहा, आह? उसकी माँ फिर चीखी, फटिक मेरा प्रिय मेरा प्रिय। फटिक ने बहुत धीरे से अपना सिर घुमाया और बिना किसी की तरफ देखे, बोला, “माँ छुट्टियाँ आ गयी हैं।
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